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________________ ( ६० ) गुणस्थानक्रमारोह. min मतलब कुतूहल से दुःख देना, सताना, उनकी आत्माको कलपाना, या अन्य किसीसे उन्हें दुःखित किये देख कर अपने मनमें खुश होना। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक किसी भी जीवको अपने हासे या अन्य किसीसे प्राण रहित करना कराना, दूसरोंके द्वारा व बन्धन किये जाते दुःखित प्राणियोंको देख कर मनमें आनन्दित होना, तथा मकान, दुकान, बंगला, हबेली, कोट, किला, बूर्ज, थंभ वगैरह मट्टी के खिलौने, अनेक प्रकार के रंग भरी मूर्तियें, इत्यादि वस्तुओंको देख कर आनन्दमें आकर उन वस्तुओंके निर्माता प्रशंसा करना कि आहा क्या अच्छा रंग भरा है ? धन्य है उस कारीगरको जिसने इस मकानको बनाया है। , इसी तरह संसारकी मनोमोहक वस्तुओंको देख कर खुशी होता हुआ उनकी प्रशंसा करे कि आहा कैसा मनोहर फुवारा चल रहा है ? क्या ही उमदा लेम्प, चिमनी, ग्लास, हाँडी, फानूस वगैरहकी रोशनी है, कैसी अच्छी आतशबाजी चल रही है, देखो कैसा मन्द मन्द मकरन्द सहित मनोमोहक शीत स्पर्शवाला पवन चल रहा है ? आजकी रसोइमें आलू कचालू, रतालू, सलगम, गाजर, मूली, सकरकंदी वगैरहकी तरकारी क्या ही मजेदार बनी है ? इत्यादि तथा खटमल, डांस, मच्छर वगैरह क्षुद्र जन्तु मनुष्योंका लहू पीते हैं, अतः ये मारनेके योग्य हैं। इन्हें अवश्य मारना चाहिये । जलचर जीव मछली वगैरह, भूचर - गाय, बकरे, दुम्मे, मृग आदि, खेचर, तीतर, कबूतर, बटेर वगैरह पक्षी पकाकर खाने के योग्य हैं । तथा सृष्टीमें जितने सर्प, बिच्छू, आदि जानवर हैं, वे सब ही मारनेके योग्य हैं, उन्हें अवश्य मारना ही चाहिये । मूसोंसे रोगोत्पत्ति होती है, अतः उन्हें जरूर मारडालना चाहिये | अमुक आदमी सिकार खेलनेमें बड़ा ही
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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