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________________ (५४) गुणस्थानक्रमारोह. कृत शुभाशुभ कर्मका उदय होने पर जीवके हृदयमें जो अप्रशस्त संकल्प विकल्प उत्पन्न होते हैं, उसे शास्त्रकार आतध्यान कहते हैं । ____ आर्त ध्यानके चार भेद होते हैं, प्रथम भेद अनिष्टसंयोग नामा है । आत्माने शरीर, स्वजन संबन्धी, कुटुंबी, सौना चाँदी वगैरह धन संपत्ति, गेहूं चावल धान्यादि, गाय, बैल, हाथी, घोड़े, गाड़ी, बाड़ी, लाड़ी, दुकान, मकान वगैरहको सुखका साधन मान लिया है, इसीसे इन पूर्वोक्त वस्तुओंका नाश करनेवाले हेतु, व्याघ्र, सिंह, सर्प वगैरह, चोर, शत्रु, राजा आदि मनुष्य, नदी समुद्रादि जल स्थान, अग्नि, तीर, तल्वार शस्त्रादि, और भूत प्रेत व्यन्तर देवादि, इन पूर्वोक्त भयंकर वस्तुओंका नाम श्रवण करनेसे तथा कितनी एक दफा तो अपने मन माने सुखका नाश करनेवाली भयंकर वस्तुओंके याद होनेसे या उसका संयोग होनेसे मनमें जो संकल्प विकल्प होता है, उन अनिच्छित वस्तु ओंके वियोगकी इच्छा होती है, अर्थात् उस वक्त हृदयमें जो यह विचार होता है कि किसी भी तरहसे यदि इन अनिष्ट वस्तुओंसे मेरा पीछा छूटे तो मुझे कुछ आनन्द मिले। इत्यादि संकल्प वि. कल्पकी परंपराको शास्त्रकार आर्त ध्यानका अनिष्टसंयोग नामक प्रथम भेद कहते हैं । ___आर्त ध्यानका दूसरा भेद इष्टसंयोग नामक है। इच्छित और प्रिय राज्य सत्ता मिले, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, मांडलिक और सामान्य राज्योंकी समृद्धि मिले, युगलियोंका अखंड सौभाग्य सुख मिले, मुख्य प्रधान मंत्रीपदकी प्राप्ति हो, श्रेष्ठ सेनापतिका अधिकार मुझे मिले और मनुष्य तथा देव संबन्धि नव योबनवती स्त्रियों के साथ विषय सुख भोगनेका अवसर मिले, पलंग वगैरह सुकोमल स्पर्शवाली सुख शय्या तथा हाथी-घोड़े--
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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