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________________ (५०) गुणस्थानक्रमारोह. प्रतिमा समझनी । तीसरी प्रतिमा तीन मासकी होती है, तीन मासतक पूर्वोक्त गुण सहित सामायिक व्रत अधिकाधिक ग्रहण करे। चौथी पौषध प्रतिमा चार मासकी है, पूर्वोक्त गुण युक्त अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या वगैरह पर्व दिनों में निरतिचारपणे पौषध व्रत उपवास करके धारण करे । पाँचवीं कायोत्सर्ग प्रतिमा पाँच मासकी है, सम्यक्त्व सहित बारह व्रत विशुद्धतया पाले, चार प्रकारका रात्रि भोजन न करे, धोतीकी लांग खुली रख्खे, दिन संबन्धि ब्रह्मचर्यका पालन करे, पर्व दिनोंमें पौषधव्रत ग्रहण करे और पूर्वोक्त विधियुक्त वीतराग देवका ध्यान धर कर कायोत्सर्ग करे । छठी ब्रह्मचर्य प्रतिमा है, पूर्वोक्त गुणों सहित रात दिन छः मास पर्यन्त विशुद्ध ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करे तथा ब्रह्मचर्य व्रतकी नव वाड़ोंको भली प्रकारसे पाले, शृंगार रसकी कथायें और स्त्रीका संसर्ग सर्वथा न करे। सातवीं सचित्त आहार वर्जन रूप प्रतिमा सात मासकी है, पूर्वोक्त गुण युक्त सचित्त अशन, पान, खादिम और स्वादिम, यह चार ही प्रकारका अशन ग्रहण न करे। आठवीं आरंभ वर्जन प्रतिमा आठ मासकी है, पूर्वोक्त गुणों युक्त श्रावक आजीविका निमित्त स्वयं आरंभ न करे किन्तु अन्यसे करानेमें उसे बाधा नहीं । नवमी प्रेष्य प्रतिमा नव मास सबंन्धिनी है, पूर्वोक्त सर्व विधि युक्त श्रावक, आप स्वयं आरंभ न करे और अन्यसे भी न करावे किन्तु उसके लिये किसी वस्तुका आरंभ किया गया हो तो वह उसे ग्रहण करे । दशवी भी आरंभ प्रतिभा है, वह इश पास संवबिनी है, पूक्ति प्रतिमास इसमें इतना दिशप समझने का है कि उसके लिके किसी वस्तुका आरंभ किया गया हो तो वह वस्तु उसे नहीं कल्प सकती। ग्यारहवीं श्रमणभूत प्रतिमा ग्यारह मा.
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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