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________________ पाँचवाँ गुणस्थान. (२९) प्रकारमें पहला अभूतोद्भावन नामा है । अभूतोद्भावन उसे कहते हैं-आत्मा सर्वगत है, अथवा खड़ धान्य-चावलके समान ही है। इत्यादि जो कथन करना है, इसे ही असत्यका अभूतोद्भावन नामक प्रथम भेद कहते हैं। दूसरा भेद भूतनिन्हव नामक है। विद्यमान वस्तुका निषेध करना, जैसे कि आत्मा है ही नहीं, फिर उसे सुख दुःख किस तरह हो सकता है ? और जब आत्मा ही नहीं तब पुण्य पापकी तो संभावना ही कहाँ ? इत्यादि जो पदाथोंके अस्तित्वका नास्तित्वरूप कथन करना है, इसे असत्यका दूसरा भेद समझना । असत्यका तीसरा भेद अर्थान्तर नामा है, वस्तुको उसके असली स्वरूपसे उसे विपरीत रूपमें कयन करना, जैसे गायको भैंस, भैंसको गाय, बैलको घोड़ा, घोड़ेको ऊंट, इत्यादि रूपसे जो कथन करना है, उसे अर्थान्तर नामा असत्यका तीसरा भेद कहते हैं । चौथा असत्यका गर्दा नामा भेद है, गहोंके जुदे जुदे तीन भेद होते हैं । जिसमें प्रथम तो सावध व्यापारमें प्रवृत्ति कराना, अर्थात् किसी भी पापारंभमें प्रवृत्त होनेके लिये किसीको उपदेश करना, उसे गो असत्यका प्रथम भेद समझना । दूसरा किसीको अप्रिय कारक वचन बोलना, जैसे काणे आदमीको काणा कह कर बुलाना । यद्यपि काणेको काणा कह कर बुलाना, यह देखनेमें तो असत्य नहीं मालूम होता, तथापि वह वचन उसके दिलको दुखानेवाला होनेसे शास्त्रकारोंने उसे सत्यमें नहीं किन्तु असत्यमें ही दाखल किया है। कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य महाराज भी अपने किये योगशास्त्रमें लिखते हैं किन सत्यमपि भाषेत, परपीडाकरं वचः। लोकेपि श्रुयते यस्मात , कौशिको नरकं गतः ॥१॥ इस लिये दूसरेको खेद करनेवाला सत्य वचन भी गोंके दूसरे असत्य भेदमें समझना। तीसरा
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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