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________________ (२४) गुणस्थानक्रमारोह. करना और १२ अतिथिसंविभाग करना, ये पूर्वोक्त बारह व्रतोंके संक्षेपसे नाम जनाये हैं, इन बारह व्रतोंका पालनेवाला प्राणी क्रमसे सर्वविरतिके योग्य होता है । ऊपर कहे हुवे आर्त, रौद्र तथा धर्मध्यानका स्वरूप प्रसंगसे आगे चलकर छठे गुणस्थानमें लिखेंगे, यहाँ पर प्रसंगसे देशविरति गुणस्थानके योग्य बारह व्रतोंका स्वरूप लिखना उचित है। (बारह व्रतोंका स्वरूप.) बारह व्रतोमें पांच तो अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत हैं, इस तरह बारह व्रत होते हैं । पाँच अणुव्रतोंमेंसे पहला स्थूल जीवोंकी हिंसाका परित्यागरूप है। इस व्रतको गृहस्थ श्रावक द्विविध-त्रिविध भंगद्वारा ग्रहण करता है। स्थूल शब्दसे द्वीन्द्रिवादि त्रसजीवोंसंबन्धि संरक्षण समझना। तथा विना स्वार्थ निरर्थक स्थावर जीवोंकी भी हिंसा विविध त्रिविध न करना चाहिये । द्विविध त्रिविधका मतलब यह है कि स्थूल जीवोंकी हिंसा न तो करे, और न अन्यसे करावे, इस भंगको द्विविध कहते हैं। मन-वचन-कायासे स्थूल जीवोंकी हिंसा न तो करे और न करावे. इसे विविध त्रिविध कहते हैं। अर्थात् द्विविध त्रिविधका मतलब यह है कि जब गृहस्थी स्थूल हिंसादिकी विरतिको ग्रहण करता है, तब इस प्रकार प्रत्याख्यान (नियम) लेता है-मन-वचन-कायासे स्थूल हिंसादि आरंभ न तो करूँ न कराऊं, मगर अनुमोदन करनेका उसे छूटा है, याने अनुमोदन करनेका उसे निषेध नहीं, क्योंकि गृहस्थीको कई सावध कार्योंकी अनुमोदना करनी पड़ती है, इस लिये यह भंग गृहस्थीको खुला होता है। यदि कोई यहाँ पर यह शंका करे
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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