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________________ पाँचवाँ गुणस्थान. (२१) रुकावट करनेवाले प्रत्याख्यान भेदवाले कषायोंके उदयसे सर्वविरतिको ग्रहण करनेकी शक्ति प्राप्त नहीं होती, परन्तु जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट देशविरति ही प्राप्त कर सकता है । जघन्य देश विरति-स्थूल हिंसादि परित्यागसे तथा मदिरा मांसका परिहार, पंचपरमेष्ठि नमस्कार महामंत्रका स्मरण, इत्यादि नियम मात्र धारण करनेसे प्राप्त होती है। अर्थात् पूर्वोक्त वस्तुओंका परित्याग करने और नवकार मंत्रका स्मरण तथा नियम मात्र ग्रहण करनेसे जीवको जघन्य देशविरति पाप्त होती है। मध्यम देशविरति अक्षुद्रादि गुण तथा न्यायसंपन्न विभव, इत्यादिसे या धर्मके योग्य गुण धारण करनेवाले, गृहस्थाश्रमके उचित षट्कर्म करनेवाले, और जिन बारह व्रतोंका स्वरूप आगे चलके कथन करेंगे, उन्हें धारण करनेवाले सदाचारी जीवको प्राप्त होती है। शास्त्रमें कहा भी है कि-धर्मयोग्यगुणाकीर्णः, षद्कर्मा द्वादशवतः, गृहस्थश्च सदाचारः, श्रावको भवति मध्यमः ॥१॥ अर्थ-धर्मके योग्य गुणोंसे युक्त, षट्कर्म करनेवाला, और बारह व्रत पालनेवाला, सदाचारी गृहस्थी, मध्यम श्रावक होता है । उत्कृष्ट देशविरति-सदाकाल सचित्त आहारका परित्याग करनेवाला, प्रतिदिन एक दफा भोजन करनेवाला, सदाकाल शुद्ध ब्रह्मचर्य व्रतको पालनेवाला, महाव्रतोंको ग्रहण करनेकी इच्छावाला, तथा गृहस्थ संबन्धि व्यापारको त्यागनेवाला श्रमणोपासक (श्रावक) प्राप्त कर सकता है। केवल बारह व्रतोंको धारण करने तथा स्थूल हिंसादिका परित्याग करने मात्रसे उत्कृष्ट देशविरति नहीं प्राप्त होती, किन्तु पूर्वोक्त विशेषणों सहित ही उत्कृष्ट देशविरतिका धारक होता है। यह पूर्वोक्त तीन प्रकारकी देशविरति जहाँ पर होती है, वहाँ पर देशविरति श्रावक पना होता है, अर्थात् उसे देशविरति नामक पंचम गुणस्थान
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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