SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) गुणस्थानक्रमारोह. अविरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थान, ये तीन गुणस्थान जीवके साथ परभवमें जाते हैं, याने इन तीनों गुणस्थानों में से किसी एक गुणस्थानको साथ लेकर जीव परभवमें जाता है। अब मिश्रगुणस्थानी जीवकी गति तथा मृत्यु कहते हैंसम्यग्मिथ्यात्वयोर्मध्ये, आयुर्येनार्जितं पुरा। म्रियते तेन भावेन, गतिं याति तदाश्रिताम्॥१७॥ श्लोकार्थ-सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके मध्यमें जिस जीवने प्रथम आयु वाँध लिया हो वह जीव उसी भावसे मृत्युको प्राप्त होता है और तदाश्रितगतिमें ही जाता है ॥ ___ व्याख्या-जिस जीवने मिश्रगुणस्थानकी अवस्थासे प्रथम ही सम्यक्त्व या मिथ्यात्वके बीचमें परभवका आयु बाँध लिया है, वह जीव मिश्रगुणस्थानको प्राप्त करके भी उस पहले ही भावसे मृत्युको प्राप्त होता है जिसमें उसने प्रथम आयुकर्मका बन्ध किया हो। जिस भावमें आयुका बन्ध किया हो मरकर उसीभाव आश्रित गतिको प्राप्त करता है । मिश्रगुणस्थानमें रहा हुआ जीव तिर्यचकी गति, तिर्यचका आयु और तिर्यचकी अनुपूर्वी, निद्रानिद्रा, प्रचला प्रचला और स्त्यानद्धि, दुर्भगनामकर्म, दुःस्वरनामकर्म, अनादेयनामकर्म, अनन्तानुबन्धि क्रोध-मान-माया-लोभ, न्यग्रोधसंस्थान, सादिसंस्थान, वामनसंस्थान, तथा कुब्जसंस्थान, ये चार मध्यसंस्थान, ऋषभनाराचसंघयग, नाराचसंघयण, अर्द्धनाराचसंघयण तथा कीलिकासंघयण, नीचगोत्रनाम कर्म, उद्योतनामकर्म, अ प्रशस्तविहायोगति और स्त्रीवेद। इनपूर्वोक्त २५ पच्चीसकर्म प्रकृतियों के बन्धका निरोध करता है । तथा इस गुणस्थानमें मनुष्य और • देवसंबन्धि आयुभी नहीं बाँधता, अतः केवल ७४ चुहत्तर कर्म
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy