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________________ प्रथम गुणस्थान. ( ५ ) मिथ्यात्व समझना और उस व्यक्तमिथ्यात्वगतजीवोंको प्रथम गुणस्थानवर्ती समझना । यह व्यक्तमिथ्यात्व केवल व्यवहारराशिवाले जीवों में ही होता है। इससे विपरीत जो अनादि कालसे सद्दर्शनरूपात्मगुणको आच्छादन करनेवाला और जो सदाकाल अविनाभाव सम्बन्धसे जीवके साथ रहता है वह अव्यक्तमिध्यात्व कहा - जाता है और वह अव्यवहारराशिवाले जीवों में होता है । अव्यमिथ्यात्व बंजर भूमिके समान होता है और व्यक्तमिथ्यात्व जोती हुई भूमिके समान होता है | मिथ्यात्वगत प्राणी किस प्रकार धर्माधर्मको नहीं जान सकता सो कहते हैं ॥ मद्यमोहाद्यथाजीवो, न जानाति हिताहितम् । धर्माधर्मो न जानाति, तथा मिथ्यात्वमोहितः ॥८॥ श्लोकार्थ - जिस तरह मदिराके नसेसे मनुष्य अपने हिताfeast नहीं जानता, वैसेही मिथ्यात्वमोहित प्राणीभी धर्माधर्मको नहीं जानता ॥ 1 व्याख्या - जैसे मनुष्यादि प्राणी मदिरासे उन्मत्त होकर अपने हिताहितको नहीं जानता वैसेही मिथ्यात्वमोहित प्राणीभी अज्ञानवशतः नष्ट चैतन्यके समान धर्माधर्मको नहीं जानता । शास्त्र - में कहाभी है— मिथ्यात्वालीढ चित्ता नितान्तं तत्वं जानते नैव जीवाः । किं जात्यन्धाः कुत्रचिद्वस्तुजाते, रम्यारम्यव्यक्तिमासादयेयुः ॥ १ ॥ अर्थात मिथ्यात्वमें आसक्त चित्तवाले प्राणी तत्वको उसी प्रकार नहीं जानते जैसे जन्मान्ध प्राणी वस्तु समूहकी रम्यारम्य व्यक्तिको नहीं जान सकते । मिथ्यात्वका नसा प्राणीको म दिराभी गहन चढ़ता है, क्योंकि मदिराका नसा तो जीवको कुछ थोड़ी देरही पागलपनेमें रखता है, फिर उसे होस आजाता है परन्तु मिथ्यात्वरूप मदिराका नसा तो ऐसा गहन है कि जिस प्राणी 最
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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