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________________ (१९८) गुणस्थानकमारोह. कहा जाता है और निश्चयनयकी अपेक्षासे तो पूर्वोक्त प्रकृत्तियोंको क्षय किया उसी समय केबली कहा जाता है, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय मोहनीय और अन्तराय इन चार घाती कर्मोंको समूल सत्तासे नष्ट करके क्षपकयोगी मोक्षके निदानभूत केवल ज्ञामको प्राप्त करता है। केवल ज्ञानके द्वारा अनादि अनन्तसृष्टिके चराचर पदार्थको केवलज्ञानी महात्मा हाथ पर रखे हुवे ऑवलेके फलके समान देखता है। विश्वमें ऐसा कोई गुप्त पदार्थ नहीं कि जिसे केवलज्ञानी महात्मा न जान सके. क्योंकि लोकालोकमें सर्व गुणपर्यायों सहित सर्व द्रव्योंको भूब भविष्यत् वर्तमान कालमें केवलज्ञानी महात्मा साक्षात्कार तया देखता है। केवलज्ञानी महात्मा कमसे कम तो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ठ तया आठ वर्ष का पूर्वकोटी वर्ष पर्यन्त पृथ्वी तलपर विचरकर जन्म मरणसे रहित होकर मोक्ष पदको प्राप्त करता है । जिस केवलज्ञानी महात्माका वेदनीयादिक कर्म आयु कर्मसे अधिक रहा हो वह केवलज्ञानी वेदनीय कर्मको आयु कर्मके बराबर करनेके लिए आठ समय मात्र कालमें समुद्घात करता है। जिसका स्वरूप हम प्रथम लिख चुके हैं तथापि यहाँ प्रसंगसे पुनः लिखे देते हैं । समुद्घात इस प्रकार करता है, प्रथम समयमें तो ऊंचे नीचे चौदह राजलोक प्रमाण अपने आत्मप्रदेशोंको दंडाकार विस्तृत करता है, दूसरे समय उन दंडाकार आत्मप्रदेशोंमेंसे दोनों तर्फ आत्मप्रदेश विस्तृत करता है अर्थात् दोनों ओर लोक पर्यन्त उत्तर दक्षिण आत्मप्रदेशोंको फैला देता है, उस वक्त आत्म प्रदेश कपाटके आकारमें हो जाते हैं तीसरे समयमें पूर्व और पश्चिममें आत्मप्रदेशोंकी दो श्रेणी करता है, वह भी लोक पर्यन्त आत्मप्र देश विस्तृत होते हैं, उस समय मंथानके आकारवाले आत्मप्रदेश
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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