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________________ क्षपकश्रेणीका स्वरूप. (१९३) इसके बाद पूर्वसे विशेष स्थिति सत्ताकी हीनताको प्राप्त करता हुआ जहाँ तक स्थितिका अन्तिम समय हो वहाँ तक संक्रमाता है, इस तरह अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अनेकानेक स्थिति खंडोंको उखेड़ता है और निक्षेपण करता है । इस प्रकार स्थिति दलमें संक्रम करता हुआ दो चरम स्थितिखंड पर्यन्त जाता है। उन दो स्थिति खंडोंसें अन्तिम खंड असंख्य गुणा करता है । जब उस अन्तिम स्थिति खंडको उखेड़ता है उस वक्त उसे क्षपककृतकरण कहते हैं । इस कृतकरण कालमें वर्तता हुआ जीव यदि पूर्वमें आयु बाँधा हो तो वह आयु पूर्ण होने पर मृत्यु प्राप्त करके चारों गतिमेंसे मृत्यु समय आत्मपरिणाम विवश चाहे उस गतिमें जा सकता है । पूर्वकालमें उसे शुक्ललेश्याथी मगर मृत्यु समय अन्य लेश्यामें जाता है, इस लिये सप्तक क्षयका आरंभ करनेवाला योगी प्रस्थापक होकर निष्ठापक होने पर भी चार गातवाला जीव कहा जाता है । जो जीव प्रथम आयुबाँध कर क्षपकश्रेणी आदरता है और चार अनन्तातुबन्धिकषाय खपाकर पीछे आयुपूर्ण होने पर मृत्यु के संभवसे जो श्रेणीसे पीछे हटे तो भी अनन्तानुबन्धिकषायोंका बीजभूत मिथ्यात्व होनेके कारण पुनः अनन्तानुबन्धिकी चौकड़ीको सजीवन कर सकता है । यहाँ पर कोई शंका करे कि पूर्वमें आयु बाँधनेवाला किस तरह क्षपकश्रेणी करे ?। इसके उत्तरमें समझना चाहिये कि जो जीव चतुर्थ गुणस्थानसे सम्यक्त्व आश्रय करके क्षपकक्षेणी प्रारंभ करता है, उसी जीव आश्रित यह वर्णन समझना, बाकी जो जीव अष्टम गुणस्थानसे क्षपक गुणश्रेणी प्रारंभ करता है, वह जीव तो पूर्वकालमें आयु बाँधता ही नहीं। जिस जीवने मिथ्यात्वको सत्तासे नष्ट कर दिया है वह मिथ्यात्वके विनाश होनेके कारण फिर अनन्तानुबन्धि
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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