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________________ ( १६२) गुणस्थानक्रमारोह. श्लोकार्थ-यदि वेदनीय कर्मसे आयु कर्मकी स्थिति कम हो तो उसे समान करनेके लिए केवली प्रभु समुद्घात करता है। ... व्याख्या-जिस केवल ज्ञानी महात्माकी वेदनीय कर्मसे आयुकर्मकी स्थिति कम होती है, वह केवली महात्मा आयुकर्मके साथ वेदनीय कर्मकी समानता करनेके लिए जो प्रयत्न विशेष करता है, उसे केवली समुद्घात कहते हैं। समुद्घात, यह तीन शब्दोंसे समुदित एक वाक्य बना है, सम् याने समंतात्-चारों तरफसे, उत् याने प्रावल्येन-प्रकर्षतासे और घातका अर्थ है नष्ट करना, सो चारों तरफसे प्रबलतापूर्वक आत्मप्रदेशोंके साथ लगे हुए कर्म वर्गणाके पुद्गलोंका नाश करना इसे समुद्घात कहते हैं। समुद्घात सात प्रकारकी होती है। वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मरणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवली समुद्घात । इस सात प्रकारके समुद्धातसे प्राणी अपने पूर्व संचित किये कर्म वर्गणाके दलियोंको नष्ट करता है। केवली समुद्घातमें केवल ज्ञानी महात्मा आयु कर्मसे अधिक अपने वेदनीय कर्मके दलियोंको नष्ट करनेके लिए अपने असंख्य आत्मप्रदेशोंको सर्व लोकाकाशमें फैलाता है। सर्वलोकमें केवली प्रभु जिस प्रकार आत्मप्रदेशोंका प्रक्षेपण करता है, अब शास्त्रकार उसीका स्वरूप लिखते हैंदण्डत्वं च कपाटत्वं, मन्थानत्वं च पूरणम् । कुरुते सर्वलोकस्य, चतुर्भिः समयैरसौ ॥ ९० ॥ श्लोकार्थ-दण्डत्व, कपाटत्व, मंधानत्व और पूरण, इन चार संज्ञाओंसे केवली प्रभु चार समयोंमें सर्व लोकको पूरित करता है ।।
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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