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________________ (१४६) गुणस्थानक्रमारोह. होनेसे केवल बाईस कर्म प्रकृतियोंका बन्ध करता है, तथा पूर्वोक्त छः कर्म प्रकृतियोंके उदयका अभाव होनेसे छासठ कर्म प्रकतियोंको वेदता है। इस नववें गुणस्थानके अन्तमें संज्वलन माया पर्यन्त छत्तीस कर्म प्रकृतियोंको सत्तासे नष्ट करता है, अतः इस गुणस्थानके अन्तमें क्षपक योगी एकसौ दो कर्म प्रकृतियोंको सत्ता रखता है। ___ अब क्षपक महात्माका दशम गुणस्थानीय कृत्य बताते हैंततोऽसौ स्थूल लोभस्य, सूक्ष्मत्वं प्रापयन क्षणात् । आरोहति मुनिः सूक्ष्मसंपरायं गुणास्पदम् ॥७२॥ श्लोकार्थ-इसके बाद वह मुनि क्षणमात्रसे स्थूल लोभको सूक्ष्म करता हुआ मूक्ष्मसंपराय नामक गुणस्थानको आरोहण करता है। व्याख्या-नववे गुणस्थानसे आगे बढ़ता हुआ क्षपक महात्मा संज्वलनके स्थूल लोभको क्षण मात्र कालसे मूक्ष्म करता हुआ सूक्ष्मसंपराय नामा दश गुणस्थानमें चढ़ता है । इस गुणस्थानमें रहा हुआ योगी पुरुषवेद तथा संज्वलनके चार कषायाँके बन्धका अभाव होनेसे सतरह कर्म प्रकृतियोंका बन्ध करता है । तीन वेद तथा संज्वलनके तीन कषायोंके उदयका अ. भाव होनेसे ६० साठ कर्म प्रकृतियोंको वेदता है, क्योंकि संज्वलनके लोभका अंश तो इस गुणस्थानमें उदय भावसे रहता ही है। संज्वलनकी माया प्रकृति पर्यन्त कर्म प्रकृतियोंको नीचेके अनिवृत्तिवादर नामा गुणस्थानमें नष्ट कर आया है और इस गुणस्थानमें आकर कोई कर्म प्रकृति नष्ट नहीं की है, इस लिए इस गुणस्थानमें भी एकसौ दो कर्म प्रकृतियोंको सत्तामें रखता है।
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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