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________________ आठवाँ गुणस्थान.. . श्लोकार्थ-यहाँ पर प्राणायामके क्रमकी प्रौढी रूढीसे ही दिखाई है, क्योंकि क्षपक महात्माको क्षपक श्रेणी आरोहण करनेमें भाव ही कारण होता है। - व्याख्या -क्षपक श्रेणीके आरोहण करनेमें जो यहाँ पर प्राणायाम क्रम प्रौढी याने पवन जीतनेके अभ्यासकी प्रगल्भता बताई गई है, वह केवल रूढीसे ही कथन की गई है, अन्यथा क्षपक श्रेणी वाले महात्माको केवल-ज्ञानोत्पत्तिमें कारणभूत भाव ही प्रधान होता है, परन्तु प्राणायाम आदि आडंबरकी आवश्यक्ता नहीं। किसी चर्पटी नामा तत्ववेत्ताने भी कहा है-नासाकन्दं नाडीवृन्द, वायोश्वारः प्रत्याहारः। प्राणायामो बीज ग्रामो ध्यानाभ्यासो मंत्र न्यासः ॥ १ ॥ हृत्पद्मस्थं भ्रूमध्यस्थं, नासाग्रस्थ श्वासान्तःस्थं । तेजः शुद्धं ध्यानं बुद्धं, ॐकाराख्यं सूर्यप्रख्यम् ॥ २॥ ब्रह्माकाशं शून्याभासं, मिथ्याजल्पं चिन्ताकल्पं । कायाक्रान्तं चित्तभ्रान्तं त्यक्त्वा सर्व मिथ्यागर्व ॥३॥ गुर्वादिष्टं चिन्तोत्सृष्टं, देहातीतं भावोपेतं । त्यक्तद्वन्दं नित्यानन्दं शुद्धतत्त्वं जानीहि त्वम् ॥ ४॥ इसी प्रकार और भी किसी एक महात्माका कथन है-ॐकाराभ्यसनं विचित्र करणैः प्राणस्य वायोर्जयात् , तेजश्चिन्तनमात्मकाय कमले शून्याम्बरालम्बनम् । त्यक्त्वा सर्वमिदं कलेवरगतं चिन्तामनोविभ्रमं तत्वं पश्यत जल्पकल्पनकलातीतं स्वभावस्थितम् ॥ १॥ ___ अब शुक्लध्यानके चार पायोंमेंसे प्रथम पायेका नाम बताते हैंसवितक सविचारं, सपृथक्त्वमुदाहृतम् । .... त्रियोगयोगिनः साधो रायंशुक्लं सुनिर्मलम् ॥६॥ श्लोकार्थ-सवितर्क, सविचार और सपृथक्तव, इन तीन भेद
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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