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जहाहियोन य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मझ अणाहया॥१॥ पिया मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणानि य दुक्खा विमोयेति,|| एसा मझ अणाहया॥२॥ माया (वि) मे महाराय!, पुत्तसोगदुहहिया। न य दुक्खा विमोयेति, एसा मझ अणाहया॥३॥ भाय। मे महाराय!, सगा जिटुकणिढगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मझ अणाहया॥४॥ भइणीओ मे महाराय!, सगा जिटुकणिटुगा। निय दुक्खा विमोयंति, एसा मझ अणाहया ६॥ भारिया में महाराय!, अणुरत्तमणुव्वया। अंसुपुत्रेहिं नयणेहि, रं मे परिसिंचई॥६॥ अन्नं पाणंच हाणं च नारिसं रोगमावण्णे , गंधमलविलेवणी मए नायमनायं वा, सा बाला नोव जई॥७॥खणंपि मे महाराय!, पासाओविन फिट्टहीन य दुक्खा विमोएइ, एसा मन अणाहयातओऽहं एवमाहंसु, दुक्खमाह पुणो पुणो वेयणा अणुहविडं जे, संसारंमि अणंतए॥९॥ सयं च जइ मुंचिग्जा, वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो, पव्वइए अणगारिय॥७३०॥ एवं च चिंतइत्ताणं, पासुत्तो मि नराहिवा!। परियत्नंतीइ राईए, वेयणा मे खयं गया॥१॥ तओ कल्ले पभायंमि, आउच्छिताण बंधवे। खंतो दंतो निरारंभो, पव्वइओ अणगारिय॥ततोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अपरस्स यो सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य॥३॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्या मे कूडसामली। अप्पा कामदहा घेणू, अया मे नंदणं वर्ण४॥ अया कत्ता विकता य, दुहाण य सुहाण यो अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्टियसुपडिओ५॥ इमा हु अन्नावि अणाहया निवा!, तामे गचित्तो निहओ सुणेहि मे। नियंठधमं लहियाणवी जहा, सीयंति एगे बहकायरा न॥६॥ जे पव्वइत्ताण महव्वयाई, सम्म (च) नो फासयई पमाया। ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ॥
५. सागरजी म. संशोधित |
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