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गहणं० । ० स वीयरागो ॥१॥ सद्देसु जो गेहिमुवेइ० ॥२॥जे यावि दोसं०॥३॥ एगंतरत्ते रुइरंसि सहे०॥४॥ सद्दाणुगासाणु०॥५॥ सहाणुवाएण परिगहेण०॥६॥ सहे अतित्ते०॥७॥ तण्हाभिभूयस्स०॥८॥ मोसस्स पच्छ। य०॥९॥ सदाणु.॥१२००॥ एमेव समि०॥१॥ सद्दे वित्तो०॥२॥ घाणस्स गंधं गहणं वयंति०॥३॥ गंधस्स घाणं०॥४॥ गंधेसु जो गेहि० रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे, सप्पे बिलाओविव निक्खभंते॥५॥ जे यावि दोसं०॥६॥ एगंतरत्तो रुइरंमि गंधे०॥७॥ गंधाणु०॥८॥ गन्धाणुवा०॥९॥ गंधे अतित्ते०॥१२१०॥ तण्हा०॥१॥ मोसस्स०॥२॥ गंधाणु०॥३॥ एमेव गंधमि०॥४॥ गंधे विरत्तो०॥५॥ जिब्भाए रसं गहण०॥६॥ रसस्स जीहं गहणं वयंति०॥७॥ रसेसु जो गेहि०। रागाउरे बडि सविभित्रकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥८॥ गाथाः १३॥१२२८॥ कायस्स फासं गहणं वयंति०॥९॥ फासस्स कायं गहणं०॥१२३०॥ फासेसु जो गेहिमु० रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे व रन्ने॥१॥ एवं फासाभिलावे गाथा:१३॥१२४१॥ मणस्स भावं गहणं० ॥२॥ भावस्स मणं ग०॥३॥ भावेसु जो गेहि० । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुभग्गावहिएव नागे। भावाभिलावे गाथाः १३॥१२५४॥ एविंदियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हे मणुयस्स रागिणो। ते चेव थेवपि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करिति किंचि॥५॥ न कामभोगा समयं उविति, न यावि भोगा विगई उविंति। जे तपओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोह। विगई उवेइ ॥६॥ कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभ दुगुंछं अरई रई चोहासं भयं सोग भित्थिवेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे॥७॥ आवजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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