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तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥७॥ रूवस्स चक्खं गहणं वयंति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स|| हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हे अमणुन्नमाह ॥८॥ रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ सो विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोअलोले समुवेइ मच्चुं ॥९॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि खणे से 3 वेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रूवं अवरज्झई से ॥११८०॥ एगंतरत्तो रुइरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥१॥रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सयणेगरूवे चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिडे ॥२॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उपायणे रक्खणसंनिओगे । वए विओगे य कहं सुह से, संभोगकाले य अतित्तलाभ। ॥३॥रूवे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुष्टुिं । अतुहिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥४॥तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विभुच्चइ से ॥५॥ भोसस्स पच्छ। य पत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समायअंतो, रूवे अतित्तो दुहओ अणिस्सो ॥६॥रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं हुज्ज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥७॥ एमेव रूवंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझेवि संतो, जलेणवा पुक्खरिणीपलासं ॥९॥ सोयस्स सदं गहणं० ॥११९०॥ सहस्स सोयं ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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