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| खलु चउदसमो कमढगो चेव ॥६॥ उग्गह णंतगपट्टो अद्धोरुग चलणिया य बोद्धव्वा । अब्भितर बाहिरि(नि)यं सणियं तह कंचुगे | चेव ॥७॥ उक्कच्छिय वेकच्छी संघाडी चेव खंधकरणी या ओहोवहिंमि एए अजाणं पन्नवीसं तु॥८ ॥ नावनिभो उग्गह णंतगो उ सो गुज्झदेसर क्खट्ठा। सो उ पमाणेणेगो घणमसिणो देहमासज्ज ॥३१३॥ भा० । पट्टोवि होइ एक्को देहपमाणेण सो उ भइयव्वो । छायंतो ग्गहणंतं कडिबंधो मल्लकच्छा वा ॥४॥ अड्ढोरुगो उ ते दोवि गेण्हिउं छायए कडिविभागं । जाणुपमाणा चलणी असीविया | लंखियाएव्व ॥५॥ अंतो नियंसणी पुण लीणतरा जाव अद्धजंघाओ। बाहिर खलुगपमाणा कडीय दोरेण पडिबद्धा ॥ ६ ॥ छाएइ अणुक्रमइ उरोरुहं कंचुओ य असीविओ यो एमेव य ओकच्छिय सा नवरं दाहिणे पासे ॥७॥ वेकच्छिया उ पट्टो कंचुयमुक्कच्छियं व छाएइ । संघाडीओ चउरो तत्थ दुहत्था उवसयंमि ॥८॥ दोण्णि निहत्थायामा भिक्खट्टा एग एग उच्चारे। ओसरणे चउहत्था णिसन्नपच्छायणी मसिणा ॥९॥ खंधकरणी य चउहत्थवित्थडा वायविहयरक्खा।। खुज्जकरणी उ कीरइ रुववईणं कुडह हे उं ॥ ३२० ॥ भा० । संघाइमेअरो वा सव्वोवेसो समासओ उवही । पासगबद्धमझुसिरो जं चाइन्नं तयं एयं ॥ प्र०२७ ॥ जिणा बारसरूवाणि० ॥२८॥ उक्कोसगो जिणाणं चउव्विहो मज्झिमोवि एमेव। जहनो चउव्विहो खलु इत्तो थेराण वृच्छामि ॥२९॥ उक्कोसो | थेराणं चउव्विहो छव्विहो अ मज्झिमओ। जहनो चउव्विहो खलु इत्तो अजाण वृच्छामि ॥३०प्र० ॥ उक्कोसो अटुविहो मज्झिमओ होइ तेरसविहो उ। जहनो चउव्विहोविय तेण परमुवग्गहं जाण ॥९॥ एगं पायं जिणकप्पियाण थेराण मत्तओ बिइओ । एयं ॥ श्री ओघनियुक्तिसूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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