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| जं नाणत्तं तयं वोच्छं ॥३॥ अतरंतबालवुड्ढा सेहाएसा गुरू असहवग्गो । साहारणोग्गहा लद्धिकारणा मंडली होई ॥४॥ नाउ नियट्टणकालं वसहीपालो य भायणुग्गाहे । परिसंठियऽच्छदवगेण्हणद्वया गच्छमासज्ज ॥५॥ असई य नियत्तेसुं एकं चअंगुलूण भाणेसु । पक्खिविय पडिग्गहगं तत्थऽच्छदवं तु गालेज्जा ॥६॥ आयरियअभावियपाणगट्टया पायपोस धुवणट्ठा। होइ य सुहं विवेगो सुह आयमणं च सागरिए ॥७॥ एक्कं व दो व तिन्नि व पाए गच्छप्पमाणमासज्ज | अच्छदवस्स भरेज्जा कसट्टबीए विगिंचेज्जा ॥८ ॥ मूइंगाईमक्कोडएहिं संसत्तगं च नाऊणी गालेज्ज छब्बएणं सउणीघरएण व दवं तु ॥ ९ ॥ इय आलोइयपटुविअगालिए मंडलीइ | सट्टाणे । सज्झायमंगलं कुणइ जाव सव्वे पडिनियत्ता ॥ ५६० ॥ कालपुरिसे व आसज्ज मत्तए पक्खिवित्तु तो पढमा | अहवावि पडिग्गहगं मुयंति गच्छं समासज्ज ॥१॥ चित्तं बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण आयरिअं जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडली थेरो ॥२॥ जइ लुद्धो राइणिओ होइ अलुद्धोवि जोऽवि गीयत्थो । ओमोवि हु गीयत्थो मंडलिराइणि अलुद्धो उ ॥ ३ ॥ ठाण दिसि | पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरु। सो चेव य आलोगो नाणत्तं तद्दिसागणे ॥४॥ निक्खमपवेस मोत्तुं पढमसमुद्दिस्सगाण ठायंति। सज्झाए परिहाणी भावासन्नेवमाईया ॥२८१॥ भा० । पुव्वमुहो राइणिओ एक्को य गुरुस्स अभिमुहो ठाई। गिण्हइ व पणामेइ व अभिमुहो इहरहाऽवन्ना ॥२॥ भा० । जो पुण हवेज्ज खमओ अतिउच्चाओं व सो बहिं ठाई । पढमसमुद्दिट्ठो वा | सागारियर क्खणट्ठाए ॥५॥ एक्केक्स्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले । कट्ठऽट्ठिए व छुम्भइ मा लेवकडा भवे वसही ॥६॥ ॥ श्री ओघनियुक्तिसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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