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इच्छसि गलेणं घेत्तुं, अहो ते अहिरीयया॥४॥ अह होइ भावधासेसणा 3 अप्पाणमप्पणा चेव साहू भुंजिउकामो अणुसासइ निजहाए॥५॥ बायालीसेसणसंकडंमि गहणमि जीव! नहु छलिओ। एण्हि जह न छलिजसि भुंजतो रागदोसेहिं॥६॥ जह अब्भंगणलेवो सगडक्खवणाण जुत्तिओ होति। इय संजमभरवहणट्टयाए साहूण आहारो॥७॥ उवजीवि अणुवजीवी मंडलियं पुव्ववन्निओ साहू। मंडलिअसमुद्दिसगाण ताण इणमो विहिं वुच्छं ॥८॥ आगाढजोगवाही निजूढऽत्तट्ठिया व पाहुणगा। सेहा सपायछित्ता बाला वुड्डेवभाईया॥९॥ दुविहो खलु आलोगो दव्वे भावे य दव्वि दीवाई। सत्तविही पुण भावे आलोगं तं परिकहेऽहं ॥५५॥ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणे य गुरु भावे। सत्तविहो आलोगो सयावि जयणा सुविहियाणं॥१॥ निक्खमपवेसमंडलिसागारियठाण परिहिय हाइ मा एक्कासणभंगो अहिगरणं अंतरायं वा॥२७५ ॥भा०। पच्चुरसिपरंमुहपद्विपक्व एया दिसा विवजेत्ता। ईसाणग्गेई व ठाएज गुरुस्स गुणकलिओ॥६॥ मच्छियकंटट्ठाईण जाणणहा पगासभुंजणया। अद्वियलागणदोसा वगुलिदोसा जढा एवं॥७॥ जं चेव अंधयारे दोसा ते चेव संकडमुहंमि। परिसाडी बहुलेवाडणं च तम्हा पंगासमुहे॥८॥ कुक्कुडिअंडगमित्तं अविगियवयणो 3 पक्खिवे कवली अइखद्धकारगं वा जं च अणालोइयं हुज्जा॥९॥ एएसि जाणणहा गुरु आलोए तओ उ भुंजार नाणाइसंधणद्वा न वनबलरूवविसयट्ठा॥२८०भा० सो आलोइयभोई जो एए जुंजइ पए सव्ये। गविसणगहणग्यासेसणाइ तिविहाइवि विसुद्ध ॥२॥ एवं एगस्स विही भोत्तव्ये वन्निओ समासेणी एमेव अणेयाणवि ॥श्रीओपनियुक्तिसूत्र]
पू. सागरजी म. संशोधित
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