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गारत्थियभासाओ य वज्जए मूय ढड्ढरं च सरं। आलोए वावारं संसद्वियरे व करमत्ते ॥ २७० ॥ भा० । एयहोसविमुक्कं गुरुणो गुरुसम्मयस्स वाऽऽलोए। जं जह गहियं तु भवे पढमाओ जा भवे चरिमा ॥८॥ काले य पहुष्पंते उच्चा(व्वा )ओ वावि ओहमालोए। | वेला गिलाणगस्स व अइच्छइ गुरू व उच्चाओ ॥९॥ पुरकम्म पच्छकम्मे अप्पे सुद्धे य ओहमालोए । तुरियकरणंमि जं से न सुज्झई | तत्तिअं कहए ॥ ५२० ॥ आलोइत्ता सव्वं सीसं सपडिग्गहं पमजित्ता । उड्ढमहो तिरियंमी पडिलेहे सव्वओ सव्वं ॥ १ ॥ उड्ढ | पुष्पफलाई तिरियं मज्जारिसाणडिंभाई। खीलगदारु गआवडणरक्खणट्ठा अहो पेहे ॥ २७१॥ भा० । ओणमओ पवडेजा सिरओ पाणा सिरं पमज्जेज्जा। एमेव उग्गहंमिवि मा संकुडणे तसविणासो ॥२॥ काउं पडिग्गहं करयलंमि अद्धं च ओणमित्ताणं । भत्तं वा पाणं | वा पडिदंसिज्जा गुरुसगासे ॥ ३ ॥ ताहे य दुरालोइय भत्तपाण एसणमणेसणाए । अट्ठस्सासे अहवा अणुग्गहादी उझाएजा ॥ २७४ ॥ भा० । विणण पट्टवित्ता सज्झायं कुणइ तो मुहत्तागं । पुव्व भणिया य दोसा परिस्समाई जढा एवं ॥ २ ॥ दुविहो य होइ साहू | मंडलिउवजीवओ य इयरो यो मंडलिमुवजीवंतो अच्छइ जा पिंडिया सव्वे ॥ ३ ॥ इयरोवि गुरुसगासं गंतूण भणइ संदिसह भंते! | | पाहुणगखवगअतरंतबालवुड्ढाण सेहाणं॥४॥ दिण्णे गुरूहिं तेसिं सेसं भुंजेज्ज गुरुअणुन्नायं । गुरुणा संदिट्ठो वा दाउ सेसं तओ | भुंजे ॥ ५ ॥ इच्छिज्ज न इच्छिज्ज व तहविय पयओ निमंतए साहू । परिणामविसुद्धीए अ निज्जरा होअगहिएवि ॥६॥ भरहेरवयविदेहे | पत्ररससुवि कम्मभूमिगा साहू। एक्कमि हीलियंमी सव्वे ते हीलिया हुंति ॥ ७ ॥ भरहेरवयविदेहे पत्ररससुवि कम्मभूमिगा साहू । एक्कमि ॥ श्री ओघनिर्युक्तिसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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