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य तिन्नि 3 करे पवेसंमि। अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेवो ॥५१०॥ एवं पडुपन्ने पविसओ उ तिन्नि व निसीहिया होति। अगदारे मझे पवेस पाए य सागरिए॥२६२॥ भा० हत्थुस्सेहो सीसप्पणामणं वाइओ नमोकारो। गुरभायणे पणामो वायाए नमो न उस्सेहो॥३॥ उवरि हेढा य पमजिऊण ललुि ठवेज सहाणे। पढें उवहिस्सुवरि भायणवत्थाणि भाणेसु॥४॥ जइ पुण पासवणं से हवेज तो उग्गहं सपच्छागीदाउँ अनस्स सचोलपट्टओ काइयं निसिरे॥२६५॥भा० चउरंगुल मुहपत्ती उज्जुयए वामहत्यि रयहरणो वोसट्टचत्तदेहो काउस्सग्गं करेजाहि॥१॥ चरंगुलमप्पत्तं जाणुगहेट्ठा छिवोवरि नाहिं। उभ्ओ कोप्परधरिअं करेज पढें च पडलं वा॥६॥ भा०। पुव्वुद्दिढे ठाणे ठाउं चउरंगुलंतरं काउंी मुहपोत्ति उज्जुहत्थे वाममि य पायपुंछणयं॥२॥ काउस्सगंमि ठिओ चिंते समुयाणिए अईआरे।जा निगमप्पवेसो तत्थ उ दोसे मणे कुज्जा॥३॥ ते उ पडिसेवणाए अणुलोमा होति विवडणाए यो पडिसेववियडणाए एत्थ चउरो भवे भंगा॥४॥ वक्खित्तपराहत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोए। आहारं च करेंतो नीहारं वा जइ करेइ॥५॥ कहणाईवक्खित्ते विकहाइ पमत्त अन्नओ व मुहे। अंतरमकारए वा नीहारे संक भरणं वा॥२६७॥भा०। अव्वक्वित्ताउत्तं वसंतमुवढिअंच नाऊण। अणु-नवेत्तु मेहावी, आलोएजा सुसंजए॥६॥ कहणाइ अवक्खित्ते कोहाइ अगाउले तदुवउत्तेसंदिसहत्ति अणुनं काअण विदिन्नमालोए॥८॥भा० नवलं चलं भासं भूयं तह ढड्ढरं च वजेजा।आलोएज्ज सुविहिओ हत्थं मत्तं च वावा॥७॥ करपायभमुहिसीसऽच्छिउट्ठमाईहिं नहि नामो वलणं हत्थसरीरे चलणं काए य भावे य॥९॥भा०॥ ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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