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चिरेणं न उवहम्मे ॥१३॥ भा०। पुरओ मझे तह भग्गओ य ठायंति खितपडिलेहो। दाइंतुच्चाराइं भावासण्णाइरक्खट्ठा॥॥ डहरे भिक्खग्गामे अंतरगामंमि ठावए तरुणे। उवगरणगहण असहू व ठावए जाणगं चेग॥९॥ दूरुट्ठिअखुड्डलए नव भड अगणी य पंत पडिणीए। संघाडेगो धुवकमिओ व सुण्णे नवरि रिक्खा॥१८०॥ जाणंतठिए ता ए3 वसहीए नस्थि कोइ पडियरहो अण्णाएऽजाणतेसु वावि संघाड धुवकम्मी॥१॥ जइ अब्भासे गमणं दूरे गंतुं दुगाउयं पेसे। तेवि असंथरमाणा इंती अहवा विसति॥२॥ पढमबियाए गमणं गहणं पडिलेहा पवेसो ३ काले संघाडेगो वऽसंथरंताण तह चेव॥३॥ पढमबितियाए गमणं बाहिं ठाणं च चिलिमिणी दोरे। चित्तूण इंति वसहा वसहिं पडिलेहिउँ पुब्बि॥१४॥ भा० वाघाए अण्णं मग्गिऊण चिलिमिणि पमजणा वसहे। पत्ताण भिक्खवेलं संघाडेगो परिणओ वा॥४॥ सव्वे वा हिडंता वसहिं मग्गति जह व समुयाणी लद्धे संकलियनिवेयणं तु तत्थेव 3 नियट्टे ॥५॥ एक्को घरेइ भाणं एको दोण्हवि पवेसए उवहिं। सव्वो उवेइ गच्छो सबाल वुड्ढाउलो ताहे ॥६॥ चोयगपुच्छ। दोसा मंडलिबंधमि होइ आगमणी संजमआयविराहण वियालगहणे य जे दोसा ॥७॥ अइभारेण 3 इरियं न सोहए कंटगाइ आयाए। भत्तद्विय वोसिरिया अइंतु एवं जढा दोसा॥८॥ आयरियवयण दोसा दुविहा नियमा ३ संजमायाए। वच्चह न तुझ सामी असंखडं मंडलीए वा॥९॥ कोअहल आगमणं संखोभेणं अकंठ गमणाईते चेव संखडाइं वसहिं वन दंति जं वऽन्न ॥१९०॥ भारेण वेयणाए न पेहए थाणुकंट आयाए। इरियाइ संजमंमि य परिगलमाणेण छक्काया॥१॥ सावयतेणा ॥श्री ओपनियुक्तिसूत्र]
पू. सागरजी म. संबोधित
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