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तो मज्झबला साहू दुट्ठस्सेणेत्थ दिट्टंतो ॥३॥ पणपण्णगस्स हाणी आरेणं जेण तेण वा धरई । जइ तरुणा नीरोगा वच्छंति चउत्थगं | ताहे ॥४॥ अह पुण जुण्णा थेरा रोगविमुक्का य असहुणो तरुणा । ते अणुकूलं खेत्तं पेसंति न यावि खग्गूडे ॥ ५ ॥ एगपण अद्धमासं | सट्ठी सुणमणुयगोणहत्थीणं । राईदिएण उ बलं पणगं तो एक्क दो तिन्नि ॥६॥ सागारिऽपुच्छगमणे बाहिरा मिच्छ छेय कयनासी । | गिहि साहू अभिधारण तेणगसंकाइ जं चऽण्णं॥७॥ अविहीपुच्छा उग्गाहिएण सिज्जातरी उ रोएज्जा। सागारियस्स संका कलहे |य सएज्जिआ खिसे ॥ १६८ ॥ वसहीए वोच्छेओ अभिसंघारितयाण साहूणं । पुणरावत्ती होज्ज व पव्वज्जा उज्जुअमईणं ॥१३॥ प्र० । | हरिअच्छेयण छप्पइय घच्चणं किच्चणं च पोत्ताणं। छण्णेयरं च पगयं इच्छमणिच्छे य दोसा ३ ॥ ९ ॥ जड़आ चेव उ खेत्तं गया उ पडिलेहगा तओ पाए। सागारियस्स भावं तणुएंति गुरु इमेहिं तु ॥ १७० ॥ उच्छू वोलिंति वई तुंबीओ जायपुत्तभंडा यो वसभा | जायत्थामा गामा पव्वायचिक्खल्ला ॥१॥ अप्योदगा य मग्गा वसुहावि य पक्कमट्टिआ जाया । अण्णक्कंता पंथा साहूणं विहरि | कालो ॥ २ ॥ समणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोउलाणं च । अनियाओ वसहीओ सारइयाणं च मेहाणं ॥ ३ ॥ आवस्सगकयनियमा | कल्लं गच्छाम तो उ आयरिओ। सपरिजणं सागारिअ वाहरिडं दिंति अणुसिद्धिं ॥ ४ ॥ पव्वज्ज सावओ वा दंसण भद्दो जहण्णयं | वसहिं । जोगंमि वट्टमाणे अमुगं वेलं गमिस्सामो ॥५॥ तदुभय सुत्तं पडिलेहणा य उग्गयमणुग्गए वावि। पडिछाहिगरणतेणे नट्टे( ट्ठे) | खग्गूड संगारो ॥ १७६ ॥ पडिलेहंतच्चि बेटियाउ काऊण पोरिसि करिति । चरिमा उग्गाहेउं सोच्चा मज्झण्हि वच्चति ॥७९॥ भा० । ॥ श्री ओघनियुक्तिसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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