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| जिणवरेहिं ॥२॥ संजमआयविराहण नाणे तह दंसणे चरित्ते यो आणालोव जिणाणं कुव्वइ दीहं तु संसारं ॥३॥ संजमओ छकाया ||
आयाकंटऽट्ठिजीरगेलने। नाणे नाणायारो दंसण चरगाइ वुग्गाहे ॥६७॥ भा०णेगावि होति दुविहा कारणनिकारणे दुविहभेओ। जं एत्थं नाणत्तं तमहं वोच्छं समासेणं॥४॥ जयमाणा खलु एवं तिविह। 3 समासओ समक्खाया। विहरताविय दुविहा गच्छगया निग्गया चेव ॥४॥प्र० जयमाणा विहरंता ओ हाणाहिंडगा चउद्धा जयमाणा तत्थ तिहा नाणहा सणचरित्ते॥५॥ पत्तेयबुद्ध जिणकप्पिया य पडिमासु चेव विहरता। आयरिअथेरवसभा भिक्खू खुड्डा य गच्छंमि॥६॥ ओहावंता दुविह। लिंग विहारे य होति नायव्वा लिंगेणऽगारवासं नियया ओहावण विहारे॥७॥ उवएस अणुवएसा दुविहा आहिंडया मुणेयव्वा उवएस देसदसण | थूभाई हुंतिऽणुवएसा ॥८॥ पुण्णमि मासकप्पे वासावासासु जयणसंकमणा आमंतणा य भावे सुत्त्य न हायई जत्थ॥९॥ अपडिलेहियदोसा वसही भिक्खं च दुल्लहं होजाबालाइगिलाणाण व पाउग्गं अहव सझाओ॥१३०॥ तम्ह। पुव्वं पडिलेहिऊण पच्छा विहीए संकमणी पेसेइ जइ अणापुच्छिउँ गणं तत्थिमे दोसा ॥१॥ अइरेगोवहिपडिलेहणाए कथवि गयत्ति तो पुच्छे। खेत्ते पडिलेहे अमुगत्थ गयत्ति तं दुटुं॥२॥ तेणा सावय मसगा ओमऽसिवे सेह इथि पडिणीए। थंडिल्ल अगणि उट्ठाण एवमाई भवे दोसा॥३॥ पच्चंति तावसीओ सावयदुब्भिक्खतेणपउराई। णियगपट्टाणे फेडणहरियाइ( हरिहरिय) पण्णीए॥४॥ सीसे जइ
आमंतइ पडिच्छगा तेण बाहिरं भाव। जइ इयरे तो सीसा तेवि समत्तंमि गच्छंति॥५॥ तरुणा बाहिरभावं न य पडिलेहोवही न || ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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