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गहिआवासगकरणं ठाणं गहिएणऽगहिएणं ॥९॥ निसिअ तुयट्टण जग्गण विराहणभएण पासि निक्खिवइ। पासत्थाईणेवं निइए नवरं अपरिभुत्ते॥११०॥एमेव अहाछंदे पडिहणा झाण अझयण कना ठाणढिओ निसामे सुवणाहरणा य गहिएण॥१॥असिवे ओमोयरिए रायढे भए नहाणे। फिडिअगिलाणे कालगवासे ठाणडिओ होइ॥२॥ तत्थेव अंतरा वा असिवादी सोउ परिरयस्सऽसही संचिक्खे जाव सिवं अहवावी ते तओ फिडिआ॥३॥ पुण्णा व नई चउमासवाहिणी नविय कोइ उत्तारे। तत्थंतरा व देसो व उढिओ न य लब्भइ पवत्ती॥६५॥ भा० फिडिएसु जा पवित्ती सयं गिलाणो परं व पडियरहो कालगया व पवत्ती ससंकिए जाव निस्संकं ॥६६॥ भा०। वासासु उब्भिण्णा बीयाई तेण अंतरा चिढे तेगिच्छि भोइ सारक्खणहढे ठाणमिच्छंति॥४॥ संविग्गसंनिभग अहप्पहाणेस भोइयघरे वा। ठवणा आयरियस्सा सामायारी पउंजणया॥५॥ एवं ता कारणिओ दुइजड़ अप्पमाएको निहारणिअं एत्तो चइओ आहिंडिओ चेव॥६॥ जह सागरंमि मीणा संखोहंसागरस्स असहता। निति तओ सुहकामी निग्गयमित्ता विनस्संति॥७॥एवं गच्छसमुद्दे सारणवीईहिं चोइया संता। निति तओ सुहकामी मीणा व जहा विणस्संति॥८॥उवएस अणुवएसा दुविहा आहिंडआ समासेणं। उवएस देसदसण अणुवएसा इमे होति॥९॥ चक्के थूभे पडिमा जम्मण निक्खमण नाण निव्वाणे। संखडि विहार आहार उवहि तह दंसणढाए॥१२०॥ एते अकारणा संजयस्स असमत्ततदुभयस्स भवे। ते चेव कारणा पुण गीयत्थविहारिणो भणिआ॥१॥ गीयत्थो य विहारो बिइओ गीयत्थमीसिओ भणिओ। एत्तो तइअविहारो नाणुनाओ ||श्री ओपनियुक्तिसूत्र॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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