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चिक्खाल्लवालसावयसरेणुकंटयतणे बहुजले आलोगोऽवि नेच्छइ पहे को णु विसेसो भयंतस्स?॥९॥ जयणमजयणं च गिही सचित्तमीसे परित्तऽणते यो नवि जाणंति न यासिं अवहपइण्णा अह विसेसो॥५०॥ अविअ जणो मरणभया परिस्समभया व ते विवजेही ते पुण दयापरिणया मोक्खथमिसी परिहरंति॥१॥ अविसिटुंमिवि जोगमि बाहिरे होइ विहुरया इहरा सुद्धस्स उ संपत्ती अफला जं देसिआ समए॥२॥ एकमिवि पाणिवहमि देसिअं सुमहदंतरं समए। एमेव निजरफला परिणामवसा बहुविहीआ॥३॥जे जत्तिआ य हेऊ भवस्स ते चेव तत्तिआ मुक्खोगणणाईया लोगा दुण्हवि पुण्णा भवे तुल्ला ॥४॥इरिआवहमाईआ जे चेव हवंति कम्मबंधाय। अजयाणं तेचेव 3 जयाण निव्वाणगमणाय॥५॥ एगंतेण निसेहो जोगेसु न देसिओ विही वावि। दलियं पथ्य निसेहो होज विही वा जहा रोगे॥६॥ जमि निसेविजंते अइयारो होज कस्सइ कयाइ। तेणेव य तस्स पुणो कयाइ सोही हवेजाहि॥७॥अणुमित्तोऽविन कस्सइ बंधो परवत्थुपच्चओ भणिओ।तहविय जयंति जइणो परिणामविसोहिमिच्छंत्ता॥८॥ जो पुण हिंसाययणेसु वट्टई तस्स नणु परीणामो। दुट्टो न य तं लिंग होइ विसुद्धस्स जोगस्स॥९॥ तम्हा सया विसुद्धं परिणाम इच्छया सुविहिएणी हिंसाययणा सव्वे परिहरियव्वा पयत्तेण॥६०॥ वजेमित्ति परिणओ संपत्तीए विमुच्चई वेश। अविहंतोऽवि न मुच्चइ किलिट्ठभावोत्ति वा तस्स॥१॥ पढमबिइया गिलाणे तइए सण्णी चउत्थ साहम्मी। पंचमियम य वसही छटे ठगणडिओ होइ॥२॥एहिअपारत्तगुणा दुत्रिय पुच्छ। दुवे यसाहम्मी। तत्थेक्वेक्का दुविहा चहा जयणा दुहेक्केका ॥३॥पडिदारगाह इहलोइआ ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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