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जम्मजरामरणाइअणेगसंसारियदुक्खजालविमुक्के समाणे जंतू कहिं परिवसेज्जा?, गोयमा! जत्य णं न जा न मच्चू न वाहिओ णो अयसऽब्भक्खाणसंतावुव्वेगकलिकलहदारिदाहपरिकेसंग इट्ठविओगो, किं बहुणा?, एगंतेणं अक्ख्य धुवसासयनिरुवमअणंतसोक्खं मोक्खं परिवसेजत्ति बेमि७॥ महानिसीहस्स बिइया चूलिया अ०८॥ समत्तं महानिसीहसुयक्खंध। __ ओम नमो चउवीसाए तित्थंकराणं ओम नमो तित्थस्स ओम नमो सुयदेवयाए भगवतीए ओम नमो सुयकेवलीणं ओम नमो सव्वसाहूणं ओम नमो सव्वसिद्धाणं नमो भगवओ अरहओ सिझ मे भगवई महइ महाविजा व्इरए मह अव्इए जयव्इइए स्एणव्इइइए वद्धअभ्अअणव्इइए वइम्अअणवइइरए जयए व्इजयए जयअन्तए अपअअइए स्अ अअअ, उपचारो चउत्थभत्तेणं साहिज्जइ एसा विज्जा, सव्वगउ इत्थ्अअरगअपआरगअउ होइ, उवठ्अअवण्अअअ गणस्स वा अण्उन्ण्आ ए | एसा सत्त वारा परिजवेयव्वा, णित्थारगपारगो होइ, जिणकप्पसम( संप)त्तीए विज्जाए अभिमंतिऊण(ए) विग्यविणायगा आराहंति, सूरे संगामे पविसंतो अपराजिओ होइ, जिणकप्पसमत्तीए विजा अभिमंतिऊणं खेमवहणी भवइ'चत्तारि सहस्साई पंच सयाओ तहेव चत्तारिशएवं च सिलोगाविय महानिसीहमि पावए॥३०॥प्रभु महावीरस्वामीनी पट्टपंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखाचान्द्रकुल प्रचंडप्रतिभासंपन्न, वादीविजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक, सैलानानरेशप्रतिबोधक देवसूरतपागच्छ, समाचारीसंरक्षक, आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्यदेवेश् श्री आनंदसागर सूरीश्वरजीमहाराजा शिष्य प्रौढप्रतापी॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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