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संजमं सुविउलंपि। अंते किलिटुभावो नवि सुज्झइ कंडरीउव्वा४॥ अपेणवि कालेणं केइ जहागहियसीलसामना। साहंति निययजं पोंडरियमहारिसिव्व जहा॥५॥ण असंसारंमिसुहं जाइजरामरणदुक्खगहियस्सो जीवस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाएओ॥४१६॥सव्वपयारेहिं सव्वहा सव्वभावभावंतरेहिं गंगोयमोत्ति बेमि॥महानिसीहसुयक्खंधस्स छट्ठमझयणं गीयत्ववहारं नाम समत्तं६॥
'भयवं! ता एयनाएणं, जंभणियं आसिमे तुमं(जहा) परिवाडीए (तच्चं) किं न अखसि, पायच्छित्तं तत्थ मज्झवी॥१॥ हवद गोयम! पच्छित्तं, जड़ तुम तमालंबसि नवरं धमवियारो ते, कओ सुवियारिओ फुडो॥२॥ण होइ तस्स पच्छित्तं, पुणरवि पुच्छेज्न गोयमा!। संदेहं जाव देहत्थं, भिच्छत्तं ताव निच्छय॥३॥ मिच्छत्तेणवि अभिभूए, तित्थयरस्स विभासियो वयणं लंधित्तु विवरीयं, वाएत्ताणं पविसंति॥४॥ घोरतमतिभिरबहलंधयारं पायालं) णवरं सुवियारि काउं, तित्थयरा सयमेव योभणति तं जहा चेव, गोयमा! समणुढए॥५॥ अत्थेगे गोयमा! पाणी, जे पव्वजिय जहा तहा। अविहीए तह चरे धम्म, जह संसाराणमुच्चए॥६॥ से भयवं! कयरे णं से विहीसीलोगो?, गोयमा! इमे णं से विहीसिलोगो, तंजहा चिइवंदणं पडिकमणं, जीवाइतत्तसब्भाव। समिइंदियदमगुत्ती, कसायनिग्गहणमुवओगं॥७॥ नाऊण सो वीसत्थो सामायारि कियाकलावं चो आलोइय नीसलो आगब्मा परमसंविग्गो॥८॥ जन्मजरमरणभीओ चउगइसंसारकम्मदहणट्ठा। पइदियह हियएणं एय अणवस्य झायंतो॥९॥ जरमरणमयणपउरे ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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