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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूयं कोवि णेच्छिही| अहवा हा हा ण जुत्तमिणं, धूया तुल्लेसावि मे णवरं ॥ २६० ॥ सुविणीया एसावि, उप्पन्नत्थ गच्छिही। ता | तह करेमि जह एसा, देसंतरं गयावि य॥१॥ ण लभेज्जा कत्थई थामं, आगच्छइ पडिल्लिया । देदेमि से वसीकरणं, गुज्झदेसं तु | सीडिमो ॥२॥ निगडाई च से देमि, भमडउ तेहिं नियंतिया । एवं सा जुन्नवेसा जा, मणसा परितम्पिडं सुवे ॥ ३ ॥ ता खंडोद्वावि | सिमिणंमि, गुज्झं सीडिज्जंतगी पिच्छइ नियडे य दिज्जंते, कन्ने नासं च वट्टियं ॥ ४ ॥ सा सिणिट्टं वियारे, गट्ठा जह कोइ ण | याणइ । कह कहवि परिभमंती सा, गामपुर नगरपट्टणे ॥५॥ छम्मासेणं तु संपत्ता, सखंड णाम खेडगी तत्थ वेसमणसरिसविहवरंडापुत्तस्स सा जुया ॥६॥ परिणीया महिला ताहे, मच्छरेण पज्जच्छे (ले) दढं। रोसेण फुरफुरंती सा, जा दियहे केइ चिट्ठइ ॥ ७ ॥ निसाए निष्भरं सइयं, खंडोट्ठीं ताव पिच्छई। तं दठ्ठे धाइया चुल्लिं, दित्तं घेत्तुं समागया ॥ ८ ॥ तं पक्खिविऊणं गुज्यंते, पालियाजाव हिययं । | जाव दुक्खसरकंता, चलचुलेवील्लं केरइ सा ॥ ९ ॥ ता सा पुणो विचिंतेइ, जावजीवं ण उड्डए । ताव देमी से दाहाई, जेण मे भवसएसुवि॥२७०॥ न तरई पिययमं काउं, इणमो पडिसंभरंति या । ताहे गोयम! आणे, चक्कियसालाउ अयमयं ॥ १ ॥ तावितु फुलिंगमेल्लतं, जोणीए पक्खित्तं फुसं । एवं दुक्खभरक्कंता, तत्थ मरिऊण गोयमा ! ॥२॥ उववन्ना चक्कवट्टिस्स, महिलारयणत्तेण सा। इओ य रंडपुत्तस्स, महिला तं कलेवरं ॥ ३ ॥ जीवुज्झियंपि रोसेण, छेत्तुं सुसुहमयं सा। साणकागमादीणं, जाव घत्ते दिसोदिसिं ॥४॥ ताव रंडापुत्तोवि, बाहिर भूमीउ आगओ। सो य दोसगुणे गाउं, बहुं मणसा वियपि । गंतूण साहुपामूलं, पव्वज्जा काउ निव्वुडो ॥ ५ ॥ ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ १५४ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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