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छए वा परिहारे वा, नत्थि याई से केइ माणणिज्जे कप्याए संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा०३३५१७ भिक्खू य गणाओ अवकम्म अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, तं च केई साहम्मिया पासित्ता वएज्जा 'कं अज्जो! उवसंपज्जिताणं विहरसि?' जे तत्थ् सव्वराइणिए तं वएज्जा, अह भंते! कस्स कप्पाए?, जे तत्थ बहुसुए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणाउववायवयणनिदेसे चिहिस्सामि ‘३४६ ११८। बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, नो ण्हं कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, थे। य से वियरेज्जा एवं ण्हं कप्पड़ एगतओ अभिनिचारियं चरित्तए थेराय ण्हं नो वियरेज्जा एवं ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चरित्तए, जे तत्थ थेरेहिं अविइण्णे एगयओ अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा१९। चरियापविढे भिक्खू जाव चउरायपञ्चरायाओ थेरे पासेज्जासच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुनवणा चिट्ठइ, अहालन्दमवि ओग्गहे २० चरियापविढे भिक्खू पं चउरायपञ्चरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवद्वाएज्जा, भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि ओग्गहे अणुन्नवेयव्ये सिया, कप्पति से एवं वदित्तए अणुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालन्दं धुवं नितियं निच्छइयं जं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासी२१) चरियानिट्टे भिक्खू० कायसंफासं '४४७१२२-२३। दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, श्री व्यवहारसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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