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उद्दिसित्तए १८२८॥ निरुद्धपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ तदिवसं आयरियउवझायत्तए उद्दिसित्तए, से किमाह भंते!?, | अस्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाइंक्डाणि पत्तियाणिज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अणुयमाणि बहुमयाणि भवन्ति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइरेहिं जं से निरुद्धपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ आयरियउवझायत्ताए उदिसित्तए तद्दिवसी९। निरुद्धतिवासपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पड़ आयारियउवझायत्ताए उद्दिसित्तए, समुच्छेयकप्पंसि, तस्स णं आयारपप्पस्स देसे अवट्ठिए अहिन्जिए भवइ सेसे 'अहिज्जिस्सामि' त्ति अहिज्जेजा, एवं से कप्पइ आयरियउवझायत्ताए उद्दिसित्तए, से य 'अहिजिस्सामिति नो अहिज्जेज्जा | एवं से नो कप्पाइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए '२१६११० निग्गन्थस्सणं नवडहरतरुणस्स आयरियउवज्झाए वीसुंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरियउवझायस्स होत्तए, कप्पड़ से पुब्दि आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छ। उवझायं, से किमाह भंते!?, दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं०-आयरिएण य उवज्झाएण यो११। निग्गन्थीए णं नवडहरतरुणियाए आयरियउवज्झाए पवत्तिणी य विसुंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरियउवझाइयाए अपवत्तिणीयाए होत्तए, कप्पड़ से पुदि आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छ। उवझायं० तओ पच्छा पवत्तिणि०, से किमाह भंते!?, तिसंगहिया समणी निग्गन्थी, तं०-आयरिएणं उवझाएणं पवत्तिणीए य २३५'।१२। भिक्खू य गणाओ अवक्कम मेहुणधर्म पडिसेवेज्जा तिणि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो ॥श्री व्यवहारसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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