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एवं से कप्पड़ गणं धारेत्तए '११०११। भिक्खू य इच्छेजा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पड़ से थे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए, थे। य से वियोज्जा एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए, थे। य से नो वियोज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए, जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा से सन्तरा छेए वा परिहारे वा, जे ते साहम्मिया उढाए विहरंति नत्थि णं तेसिं केइ छए वा परिहारे वा ११६।२। तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पत्रतिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्ख( क्खु )यायारे अभिनायारे असबलायारे असंकिलिहायारचरित्ते बहुस्सुए बझागमे जहनेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ आयरियउवझायत्ताए उद्दिसित्तए।३। सच्चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले जाव संकिलिट्ठायारचरित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियउवझायत्ताए उद्दिसित्तए।४। एवं पंचवासपरियाए समणे निगंथे आयारकुसले जाव असंकिलिहायारचरित्ते बहुस्सुथे बझागमे जहन्नेणं दसाकप्पववहारधरे
कम्पइ आयरियउवझायत्ताए पवत्ति० उदिसित्तए ५। सच्चेव णं से पञ्चवासपरियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले जाव | अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियउवझायत्ताए पव० उद्दिसित्तए।६। अहवासपरियाए समणे निग्गन्थे आयारकुसले० जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पड़ से आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए७) सच्चेव णं से अट्ठवासपरियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले० नो कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए ॥ श्री व्यवहारसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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