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विहरितए, ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कम्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए '५७७ ' (१७) भिक्खू य गणाओ अवक्क्रम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, नो से कम्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पड़ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कम्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कम्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए '५९४ ११८ । गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए नो से कप्पड़ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता० विहरित्तए कप्पड़ से गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ताणं अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पड़ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, ते य से वियरंति एवं से कप्पड़ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए, ते य से नो वियरंति एवं से नो कम्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं ॥ श्री बृहत्कल्पसूत्रम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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