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आयरिओ॥१॥कप्याकप्पविहिन्नू दुवालसंगसुयसारही( सव्वं) छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविया(सारया धीरा ॥२॥एए ते निजवया|| परिकहिया अट्ठ उत्तमम्मिा जेसिंगुणसंखाणं न समत्था पायया वुत्तुं॥३॥ एरिसयाण सगासे सूरीणं पवयणम्यवाईणी पडिवजिज महत्थं समणो अब्भुज्जयं मरणं ॥४॥आयरियउवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे ओजे में किया क्साया (जंमि कसाओ कोइवि प्र०) सव्वे तिविहेण खामेमि॥५॥ सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करे सीसे। सव्वं खभावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयंपि (खमिज सव्वस्सवि सयंमि प्र०) ॥६॥ गरहित्ता अपाणं अपुणक्कारं पडिक्कभित्ताण। नाणम्मि दंसणम्मि अ चरित्तजोगाइयारे अ ॥७॥ तो सीलगुणसमग्गो अणुवहयक्खो बलं च थामं ची विहरिज्ज तवसमग्गो अनियाणो आगमसहाओ ॥८॥ तवसोसियंगमंगो संघिसिराजालपागडसरीरो । किच्छाहियपरिहत्थो परिहरइ कलेवरं जाहे ॥ ९॥ पच्चक्खाइ अ ताहे अन्ननसमाहिपत्तियंभित्ती। तिविहेणाहारविहिं दियसुगइकायपगईए॥ ३४०॥ इहलोए परलोए निरासओ जीविए अमरणे ओ सायाणुभवे भोगे जस्स अ अवहट्टणाऽईए॥१॥निम्ममनिरहंकारो निरासयोऽकिंचणो अपडिकम्भो।वोसट्ठविसटुंगो चत्तचियत्तेण देहेणं॥२॥तिविहेणविसहमाणो) परीसहे दूसहे अ उत्सग्गे। विहरिज विसयतण्हारयमलमसुभं विहणमाणो ॥ ३॥ नेहक्खएव दीवो जह खयभुवणेइ दीववट्टिम्मि (डिपि)ोखीणाहारसिणेहो सरीरवटि तह खवेइ॥ ४॥ एव परझा असई परक्कमे पुव्वभणियसूरीणीपासम्मि उत्तमढे कुज्जा तो एस परिकम्मं ॥५॥आगरसमुट्ठियं तह अझुसिरवागतणपत्तकडए यो कट्ठसिलाफलगंमिव अणभिज्जय निष्पकप्पंमि ॥६॥ निस्संधिया |॥श्री भरणसमाधि सूत्री
| पू. सागरजी म. संशोधित ||
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