SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अरहंतभासियं लोए । ते धन्ना ते पुरिसा नाणी य चरिनजुत्ता य ॥ १॥ बंधं मुक्खं गइरागई च जीवाण जीवलोयम्पि । जाणंति | सुयसमद्धिा जिणसासणचेइयविहिण्णू ॥ २ ॥ भद्दं सुबहुसुयाणं सव्वपयत्थेसु पुच्छणिजाणं । नाणेण जोड़वयारे सिद्धिंपि गएसु सिद्धेसु ॥३॥ किं इत्तो लट्ठयरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा? | चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति ॥ ४॥ चंदाउ नीइ जुण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिणवयणी जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं ॥ ५ ॥ चउदसपुव्वधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च । लोगुत्तमपुरिसाणं तेसिं नाणं अभिन्नाणंी ॥ ६ ॥ नाणेण विणा करणं न होइ नाणंपि करणहीणं तु। नाणेण य करणेण य दोहिवि दुक्खक्खयं होइ ॥ ७ ॥ दढमूलमहाणंमिवि वरमेगोऽवि य सुयसीलसंपण्णो । मा हु सुयसीलविगला काहिसि मा (प्र०ना) गं पवयणम्मि॥८ ॥ तम्हा सुयम्मि जोगो कायव्वो होइ अप्पमत्तेणी जेणज्माण परंपि य दुक्खसमुद्दाओ तारेइ ॥ ९ ॥ परमत्थम्मि सुदिट्ठे अविणद्वेसु तवसंजमगुणेसु । लब्भइ गई विसुद्धा सरीर सारे विणदुम्मि ॥ १५० ॥ अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं, तिहिवि गुत्तीहिं । न य कुणइ रागदो से तस्स चरितं हवइ सुद्धं ॥ १ ॥ उक्कोसचरित्तो ऽविय परिवडई मिच्छभावणं कुणई। किं पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मंमि वट्टंतो? ॥ २ ॥ तम्हा धत्तह दोसुवि काउं जे उज्जमं पयत्तेणी सम्मत्तम्मि चरित्ते करणम्मि य मा पमाएह ॥ ३ ॥ जाव य सुई न नासइ जाव य जोगा न ते पराहीणा। सद्धा व जा न हायइ इंदियजोगा अपरिहीणा ॥ ४ ॥ जाव य खेमसुभिक्खं आयरिया जाव अत्थि निजवगा। इड्डीगारवरहिया नाणचरणदंसणंमि रया ॥ ५॥ ताव खमं काउं जे सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं । समयपडागाहरणं सुविहियइटुं । ॥ श्री मरणसमाधि सूत्रं ॥ १० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy