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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |दंसणनाणचरिते निस्सल्लो विहर चिरकालं ॥ २ ॥ आउव्वेयसमत्ती तिगिच्छिए जह विसारओ विज्जो । रोआयंकागहिओ सो निरुयं आउरं कुणइ ॥ ३ ॥ एवं पवयणसुयसारपारगो सो चरितसुद्धीए । पायच्छित्तविहिन्नू तं अणगारं विसोहेइ ॥ ४ ॥ भणइ य तिविहा भणिया सुविहिय! आराहणा जिणिंदेहिं । सम्मत्तम्मिय पढमा नाणचरितेहिं दो अण्णा ॥ ५ ॥ सद्दहगा पत्तियगा रोयगा जे य वीरवयणस्स ।। सम्मत्तमणुसरंता दंसणआराहगा हुंति ॥ ६ ॥ संसारसमावण्णे य छव्विहे मुक्खमस्सिए चेव । एए दुविहे जीवे आणाए सद्दहे निच्चं ॥ ७॥ धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकायं च। आणइ सद्दहंता सम्मत्ताराहगा भणिया ॥ ८ ॥ अरहंतसिद्ध चेइयगुरूसु सुयधम्मसाहु वग्गे यो आयरियउवज्झाए पव्वयणे सव्वसंधे य ॥ ९ ॥ एए भत्तिजुत्ता पूयंता अहरहं अणण्णमणा। सम्मत्तमणुसरिता परित्तसंसारिया हुति ॥ २० ॥ सुविहिय ! इमं पइण्णं असद्दहंतेहि णेगजीवेहिं । बालमरणाणि तीए मयाई काले अणंताई ॥ १ ॥ एवं पंडियमरणं मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि न मरंति अप्पमत्ता चरितमाराहियं जेहिं ॥ २ ॥ दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुडा पुव्वसंगओ मुक्का। जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं ॥ ३ ॥ एवं पंडियमरणं जे धीरा उवगया उवाएणी तस्स उवाए उ इमा परिक्रम्भविही उ जुंजीया ॥ ४ ॥ जे कुम्मसंखताडणमारुयजियगगणपंकयतरुणं । सरिकष्णा सुयकम्पिय आहारणीहार चिट्टागा ॥ ५ ॥ निच्चं तिदंडविरया तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिस्सल्ला | तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयावरा समणा ॥ ६ ॥ पंचमहव्वयसुत्थिय संपुण्णचरित सीलसंजुत्ता। तह तह मया । महेसी हवंति आराहगा समणा ॥ ७ ॥ इक्कं अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च। तो नाणदंसणचरिततवेसु सुठिया मुणी हुति ॥८ ॥ मधि सूत्रं ॥ २ पू. सागरजा संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
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