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| उल्लविंति गयदसणा । न य झायंती थीणं, अंगोवंगाई तं गच्छं॥२॥वज्ञह अप्पमत्ता अज्जासंसग्गि अग्गिविससरिसी। अजाणुचरो साहू लहइ अकित्तिं खुअचिरेण॥३॥थेरस्स तवस्सियस व बहुस्सुयस्सव पमाणभूअस्सोअज्जासंसग्गीए जणजपणयं हविजाहि॥४॥ किं पुण तरूणो अबहुस्सुओ यण याविह विगिढतवचरणो। अज्जासंसग्गीए जणजंपणयं न पाविजा? ॥५॥ जइवि सयं थिरचित्तो तहावि संसम्गिलद्धपसराए। अग्गिसभीवेव ध्यं विलिज चित्तं खु अज्जाए ॥६॥ सव्वत्थ इथिवगंमि अप्पमत्तो सया अवीसत्थो। नित्थरइ बंभचे तविवरीओ न नित्थर३॥७॥ सव्वत्थेसु विभुत्तो साहू सव्वत्थ होइ अव्यवसो।सो होइ अणपव्वसो अजाणं अणुचरंतो उ॥८॥ खेलपडिअमप्याणं न तरइ जह मच्छिा विमोएउ। अजाणुचरो साहू न तरइ अप्पं विमोएउ ॥ ९॥ साहुस्स नत्थि लोए अज्जासरिसी हु बंधणो उवा। धम्मेण सह ठवंतो न य सरिसो जाण असिलेसो ॥७०॥ वायामित्तेणवि जत्थ भट्ठचरित्तस्स निग्गह विहिणा। बहुलद्धिजुअस्सावि कीरइ गुरुणा तयं गच्छं ॥१॥ जत्थ य सन्निहिउक्खडआहडमाईण नामगहणेऽवि। पूईकम्मा भीआ| आउत्त। कप्पतिप्पेसु॥ २॥ म3ए निहुयसहावे हासदवविवजिए विगहमुक्के। असमंजसमकरिते गोअभूम? विहरंति॥ ३॥ मुणिणो नाणाभिगह दुक्करपच्छित्तमणुताणी जायइ चित्तचमकं देविंदाणंपि तं गच्छं ॥ ४॥ पुढविदगअगणिमारुयवणफइतसाणविविहजीवाणी मरणंतेविन पीडा कीरइ मणमा तयं गच्छं ॥५॥खजूरिपत्तमुंजेण, जो पमज्जे उक्स्सयो नो दया तस्स जीवेसु, सम्म जाणाहि गोयमा! ॥ ६॥ जत्थ् य बाहिरपाणिस्स बिंदुभित्तंपि गिम्हमाईसु। ताहासोसियाणा मरणेऽवि मुणी न गिण्हंति ॥७॥ | ॥श्री गच्छाचार सूत्र ॥ |
पू. सागरजी म. संशोधित
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