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वयणेणं, अभयपि न धुंट५। जेण नो तं भवे अभ्यं, जं अगीयत्थदेसियं ॥ ६॥ परमत्थओ न तं अभयं विसं हालाहलं खु तीन तेण|| अजरामरो हुज्जा, तक्खणा निहणं वा ॥७॥अगीयत्थकुसीलेहि, संग तिविहेण वोसिरे। मुक्खमगंसिभ विग्धं, पहंभी तेणगे जहा ॥ ८॥ पज्जलियं हुयवहं दव, निस्संको तत्थ पवेसि अत्ताणं निद्दहिज्जाहि, नो कुसीलस्स अल्लिए ॥९॥ पजलंति जत्थ धगधगधगस्स गुरूणावि चोइए सीसा। रागहोसेण वियणुसएणं तं गोयम! न गच्छं ॥५०॥ गच्छो महाणुभावो तत्थ वसंताण निजरा विउला। सारणवारणचोअणमाईहिं न दोसपडिवत्ती॥१॥गुरूणो छंदणुवित्ती सुविणीए जियपरीसहे धीरे।णवि थद्धे णविलुद्धे णवि गारविए न विगहसीले ॥२॥खते दंते गुत्ते मुत्ते वेगभगमल्ली।दसविहामायारी-आवस्सगसंजभुजुत्ते ॥३॥खरफरुसकक्साएऽणिदुट्ठाइ निहरगिराए।निभच्छणनिद्धाडणमाईहिं न जे पउस्संति ॥४॥जे यन अकित्तिजणए नाजसजणए नऽकजकारीओन पवयणउड्डाहकरे कंठग्गयपाणसेसेऽवि ॥५॥ गुरूणा कज्जमजे खरककसदुनिहरगिराए। भणिए तहत्ति सीसा भणति तं गोयमा! गच्छं ॥ ६॥ दूरूझिअ पत्ताइसु ममत्तए निष्पिहे सरीरेऽवि। जायमजायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥७॥ तंपि न रूवरसत्थं न य वण्णत्थं न चेव दथ्यत्थं। संजमभरवहणत्थं अक्खोवंगंव वहणत्थं ॥ ८॥ वेयण वेयावच्चे ईरियट्ठाए य संजभट्टाए। तह पाणवत्तियार छटुं पुण धम्मचिंताए॥९॥ जत्थ य जिट्ठकणिटो जाणिजइ जिविणयबहमाणो। दिवसेणवि जो जिट्ठो न हीलिज्जइ स गोयमं! गच्छो ॥६०॥ जत्थ य अजाकप्यं पाणच्चाएवि घोरदुब्भिक्खोनय परिभुंजइ सहस गोयम! गच्छं त्यं भणियं ॥१॥जत्थ य अजाहि समं थेराविन | ॥श्री गच्छाचार सूत्र ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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