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इति एस पाहुडत्या अभव्वजणहिययदुलहा इणमो। उवित्तिता भगवती जोतिसरायस्स पन्नत्ती॥९८॥ एस गहितावि संती थद्धे || गारवियमाणिपडिणीए। अबहुस्सुए ण देया तविवरीते भवे देया॥९९॥ सद्धाधितिउट्ठाणुच्छाहम्मबलविरियपुरिसकारेहि। जो सिक्खिओवि संतो अभायणे परिकहे(प्र० क्खिवे)जाहि ॥१००॥ सो पश्यणकुलगणसंघबाहिरो णाणविणयपरिहीणो। अहंतथेरगणहरमेरं किर होति वोलीणो ॥१०१॥ तम्हा घितिट्टाणुच्छाहकम्मबलविरियसिक्खिणाणी धारेयव्वं णियमा ण य अविणएसु दायव्वं ॥१०२॥ वीरवरस्स भगवतो जरमरणकिलेसदोसरहियस्सो वंदामि विणयपणतो सोक्खुप्पाए सया पाए ॥१०३॥१०७। इति श्रीसूर्यप्रज्ञप्त्युपांग सूत्रं संपूर्ण ॥ प्रभु महावीरस्वामीनी परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक, सैलाना नरेश प्रतिबोधक, देवसूर तपागच्छ, समाचारी संरक्षक, आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्यदेवेश् श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ प्रतापीसिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म. सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्य विजेतामालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगम विशारद, नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म. सा. शिष्य शासन प्रभावक, नीडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्ति |रसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघुगुरुभ्राता प्रवचन प्रभावक पू.आ. श्री हेमचन्द्रसागर म.सा. शिष्य पू. गणी श्री ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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