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|नो फुडे, एवं जाव सयंभूरमणसमुद्दे, एसा परिवाडी इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वा, तं०-जंबुद्दीवे लवणे थायति कालोय पुक्खरे |
वरुणो। खीर घय खोय गंदिय अरुणवरे कुंजले रुयते ॥२०४॥ आभरणवत्थगंधे उपलतिलए य पउमनिहिरयणे। वासहर दह नईओ विजया वक्खार कप्पिंदा॥२०५॥ कुरु मंदर आवासा कूडा नक्खत्तचंदसूरा यो देवे णागे जक्खे भूए य सयंभुरमणे य ॥२०६॥ एवं जहा बाहिरपुक्खरद्धे भणिए तहा जाव सयंभूरमणसमुद्दे जाव अद्धासमएणं नो फुडे, लोगे णं भते! किणा फुडे कइहिं वा काएहिं जहा आगासथिग्गले, अलोए णं भंते! किणा फुडे कतिहिं वा काएहिं पुच्छा, गो०! नो धम्मस्थिकारणं फुडे जाव नो आगासस्थिकारणं आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे नो पुढवीकाइएणं फुडे जाव नो अद्धासमएणं फुडे एगे अजीवदव्वदेसे अगुरुलहुए अणंतेहि अगुरुलहुयगुणेहिं संजुत्ति सव्वागासअणंतभागूणे॥१९८॥ १५ ३०१॥
इंदियउवच्य णिवत्तणा य समया भवे असंखेजा। लद्धी उवओगद्धं अप्पाबहुए विसेसहिया॥२०७॥ ओगाहणा अवाए ईहा तह वंजणोग्गहे चेवो दव्विंदिय भाविंदिय तीया बद्धा पुरक्खडिया ॥२०८॥ कतिविहे णं भंते! इंदियउवचए पं०?, गो०! पंचविहे इंदियउवचए पं००- सोतिंदिय० जाव फासिंदियउवचते, नेइयाणं भंते! कतिविहे इंदिओवचए पं०?, गो०! पंचविहे पं० ०- सोतिंदिओवचए जाव फासिदिओवचए, एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ इंदिया तस्स ततिविहो चेव इंदिओवचओ भाणियव्यो, कतिविहा णं भंते! इंदियनिव्वत्तणा पं०?, गो०! पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पं० २०- सोतिंदियनिव्वत्तणा जाव ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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