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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं, एतेसिं णं भंते! जीवाणं संवुडजोणियाणं वियडजो० संवुडवियडजो० अजोणियाण य कयरे०?, गो०! सव्वत्थोवा जीवा संवुडवियडजोणिया वियड० असंखि० अजोणिया अणंत० संवुड० अणंतगुणा१५२॥ कइविह। णं भंते जोणी पं०?, गो०! तिविहा जोणी पं० २०-कुम्मुण्णया संखावत्ता वंसीपत्ता, कुम्भुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं, कुम्मुण्णयाए णं जोणीए उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमति तं०-अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा, संखावत्ता णं जोणी इत्थीरयणस्स, संखावत्ताए जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमति चयंति उवचयंति नो चेव णं णिफजंति, वंसीपत्ता णं जोणी पिहजणस्स, वंसीपत्ताए णं जोणीए पिहजणे गब्भे वक्कमंति१५३॥ जोणिपदं९॥ कति णं भंते! पुढवीओ पं०?, गो०! अट्ठ पुढवीओ पं० २०-२यणप्पभा सक्कर० वालुय० पंक० धूम० तम० तमतमध्यभा ईसीपब्भारा, इमा णुं भंते! रयणप्पभा पुढवी किं चरा अचरमा चरमाइं अचरमाई चरमंतपदेसा अचमंतपदेसा ? गो०! इमा णं रयणप्पभा पुढवी नो चरमा नो अचरमा नो चरमातिं नो अचमातिं नो चमंतपदेसा नो अचमतपदेसा नियमा अचमं चरमाणि य चमतपदेसा य अचमतपदेसा य, एवं जाव असत्तमा पुढवी, सोहम्माती जाव अणुत्तरविमाणा f०, एवं चेव ईसीपब्भारावि, एवं चेव लोगेवि, एवं चेव अलोगेवि।१५४। इभीसे णं भंते! रणयप्पभाए पुढवीए अचरमस्स य चरमाण य चमतपएसाण य अचमतपएसाण य दवट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वदुपएसट्टयाए कयरे०?, गो०! सव्वत्थोवा इभीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
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