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||गो०! संतरंपि उववनंति निरंतरंपि उववजंति, तिरिक्खजोणिया णं भंते! किं संतरं उ३० निरंतरं उव०?, गो०! संतरपि उवव०|| निरंतरंपि उवव०, मणुस्सा णं भंते! किं संतरं उवव० निरंतरं उवव०?, गो०! संतरंपि उ० निरंतरंपि उवव०, देवा णं भंते!० गो०! संतरंपि उवव०! निरंतरंपि उवव०, रयणप्यभापुढवीनेरइया णं भंते!०?, गो०! संतरपि उवव० निरंतरंपि उवव०, एवं जाव अहेसत्तमाए संतरपि उवव० निरंतरंपि उवव०, असुरकुमारा णं भंते! देवा णं किं संतरं उ० निरंतर उव०?, गो०! संतरंपि० निरंतरंपि०, एवं जाव थणियकुमारा, पुढवीकाइया णं भंते! किं संतरं उव० निरंतरं उव०?, गो०! नो संतरं उव० निरंतरं उ०, एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं उव० निरंतरं उव०, बेइंदिया णं भंते० किं संतरं उक्० निरंतरं उव०?, गो०! संतरंपि उव० निरंतरंपि उव०, एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, मणुस्सा णं भंते! किं संतरं उव० निरंतरं उ०?, गो०! संतरंपि उ० निरंतरंपि उ०,एवं वाणमंतराजोइसिया सोहम्भीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलोयलंतगमहासुक्कसहस्सारआणयपाणयआरणच्चुयहिहिमगेविजगमज्झिमगेविज्जगउरिमविज्जगविजयवेजयंतजयंतअपराजितसव्वट्ठसिद्धदेवा य संतरंपि उ० निरंतरंपि उ०, सिद्धा णं भंते! किं संतरं सिझंति निरंतर सिझंति?, गो०! संतरंपि सिझंति निरंतरपि सिझंति।१२५ो नेरइया णं भंते! किं संतरं उव्वट्ठति निरंतरं उव्वटुंति?, गो०! संतरंपि उव्वटुंति, निरंतरंपि उव्वटेंति एवं जहा उववाओ भणिओ तहा उव्वट्टणापि सिद्धवज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अहिलावो कायव्वो दारं३३१२६। नेरझ्या णं भंते! एगसमएणं केवइया ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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