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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ||णिच्चऽपिय णं अहं जिणपालियस्स अणिट्ठा० निच्चं मम जिणपालिए अणिट्टे० निच्वंपिय णं अहं जिणरक्खियस्स इट्ठा० निच्चंपिय णं ममं जिणरक्खिए इट्ठे०, जति णं ममं जिणपालिए रोयमाणी कंदमाणीं सोयमाणीं तिप्पमाणीं विलवमाणीं णावयक्खति किण्णं तुमं जिणरक्खिया ! ममं रोयमाणी जाव णावयक्खसि ?, तते णं- सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा उ जिणरक्खियस्स मणं । नाऊण वधनिमित्तं उवरि मागंदियदारगाण दोण्हंपि ॥ २२ ॥ दोसकलिया सललियं णाणाविह चुण्णवासमीसं (सियं) दिव्वं घाणमणनिव्वुइकरं सव्वोउयसुरभिकुसुमवुद्धिं पहुंचमाणी ॥ २३ ॥ णाणामणिकणगरयणघंटियखिंखिणिणेऊर मेहल भूसणरवेणं। दिसाओ विदिसाओ पूरयंति वयणमिणं बेति सा सकलुसा ॥२४॥ होल वसुल गोल गाह दइत पिय रमण कंत सामिय णिग्घिण णित्थक्क | छि (प्र० थिण्ण णिक्किव अकयण्णुय सिढिलभाव निल्लज लुक्ख अकलुण जिणरक्खिय मज्झं हिययरक्खगा ! ॥ २५ ॥ गहु जुज्जसि एक्कियं अणाहं अबंधवं तुज्झ चलणओवायकरियं उज्झिउं महण्णं । गुणसंकर ! अहं तुमे विहूणा ण समत्यावि जीविउं खर्णपि ॥ २६ ॥ इम्स्स उ अणेगझसमगर विविधसावयस्याउलघरस्स । रयणागरस्स मज्झे अप्पाणं वहेमि तुज्झ पुरओ एहि णियत्ताहि जड़ सि कुविओ खमाहि एक्कावराहं मे ॥२७॥ तुज्झ य विगयघणविमलससिमंडलगार (लोवम पा० ) सस्सिरीयं सारयनवकमलकुमुदकुवलय(विमल ) दलनिकर (विमउलविगसिय पा० ) सरिसनिभं ! नयणं वयणं पिवासागयाए सद्धा मे पेच्छिउं जं अवलोएहि ता इओ ममं गाह जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥ २८ ॥ एवं सम्पणयसरलमहरातिं पुणो २ कलुणाई वयणातिं । जंपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेइ पू. सागरनी म. संशोधित ॥ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गम् ॥ १५२ For Private And Personal
SR No.021008
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Prakashan
Publication Year2005
Total Pages279
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size74 MB
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