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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरमं असुरकुमारावासं वीतिक्ते परमअसुरकुमारा०?, एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारावासं, जोइसियावासं एवं वेमाणियावास जाव विहरइ । ४९९ । नेरइयाणं भंते! कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसए पं०?, गोयमा ! से जहानामए केई पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए आउट्टियं बाहं पसारेज्जा पसारियं वा बाहं आउंटेजा विक्खिण्णं वा मुष्टुिं साहरेज्जा साहरियं वा मुलुि विक्खिरेजा उत्रिमिसियं वा अच्छि निम्मिसेज्जा निम्भिसियं वा अच्छि उभ्भिसेज्जा, भवे एयारूवे?, णो तिणढे समढे, नेरक्या णं एगसमएण वा दुसमएण वा तिसमएणवा विगहेणं उववजंति, नेरइयाणं गोयमा! तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए पं०, एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं एगिंदियाणं चउसमइए विगहे भाणियव्वे, सेसं तं चेवा ५०० नेरइया णं भंते! किं अणंतरोववनगा परंपरोववनगा अणंतरपरंपरअणुववनगा?, गोयमा! ने२० अणंतरोववनगावि परंपरोववनगावि अणंतरपरंपरअणुववनगावि, से केण एवं वु० जाव अणंतरपरंपअणुववन्नगावि?, गोयमा! जे णं नेरइया पढमसमयोववन्नगा ते णं नेरइया अणंतरोववन्नगा जे णं नेरइया) अपढमसमयोववनगा ते णं नेरइया परंपरोववनगा जे णं ने२० विगहगइसमावनगा ते णं नेरइया अणंतरपरंपरअणुववन्नगा, से तेणटेणं जाव अणुववन्नगावि, एवं निरंतरं जाव वेमा०, अणंतरोववन्नगाणं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति तिरिक्ख० मणुस्स० देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाऽयं पकरेंति, परंपरोववन्नगाणं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति तिरिक्खजोणियाउयपि पकरेंति मणुस्साउयंपि पकरेंति नो देवाउयं पकरेंति, | ॥श्रीभगवती सूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021006
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 02 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages283
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size17 MB
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