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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्विपि ण भए समणस्स भगवओमहावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसले पच्चक्खाए|| जावजीवाए इयाणिंपियणंसमणस्स भ०म० अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसलं पच्चक्खामि, एवं सव्वं असणं पाणं खा० सा० चव्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, जंपिय इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव फुसंतुत्तिकदु| | एयंपिणंचरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं वोसिरामित्तिकटुसंलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपड़ियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखभाणे विहरति, तएणंसेखंदए अण० समणस्स भ०म० तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयभादियाई इकारस अंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाई सामन्नपरियागं पाणित्ता भासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सटुिं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिझते वीए कालगए।९४ एणं थे। भगवंतो खंदयं अण कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति त्ता पत्तचीवराणि गिण्हंति त्ता विपुलाओ पव्व्याओ सणियं २ पच्चोरुहंति ना जेणेव समणे भगवं म० तेणेवउवा० समणं भगवं म० वंदंति नभसंति ता एवं वदासी एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नाभं अणगारे पगइभहए पगतिविणीए पगतिउवसंते पगतिपयणुकोहमाणमायालोमे भिउमहवसंपन्ने अल्लीणे भहए विणीए, सेणं देवाणुप्पिएहिं अब्भणुण्णाए सभाणे सयमेव पंच महत्वयाणि आरोवित्ता समणे य समणीओ य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्व्यं तं चेव निरवसेसं जाव आणुपुब्बीए कालगए इथे ये से आयारमंडए, भंते! ति भगवं गोयमे समणं भगवं म० वंदति नमसति त्ता एवं व्यासी एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदर नाम | ॥श्रीभगवती सूत्रं ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021005
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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