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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक्कस्स भवे परीमाणं॥५०॥ एएणं सागरोवम५माणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा तित्रि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदूसमा एm सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं अणिया कालो दूसमसुसमा एकवीसं वाससहस्साई कालो दूसमा एकवीसं वाससहस्साई कालो दूसमदूसमा पुणरवि उस्सप्पिणीए एकवीसं वाससहस्साई कालो दूसमदूसमा एकवीसं वाससहस्साई जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, दस सागरोवभकोडाको डीओ कालो ओसप्पिणी दससागरोवभकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी वीसं सागरोवभकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी | उस्माप्पणी २ ॥ २४६॥ जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इसीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमढपत्ताए भरहस्स रभावपडोयारे होत्था?, गोयमा! बहसमरमणिजे भूमिभागे होत्था, से जहानामएआलिंगपुक्खरेति वा एवं उत्तरकुरुवत्तव्वयानेयव्वा जाव आसयंति सयंति, तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ २ देसे २ तहिं २ बहवे ओराला कुद्दाला जाव कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था तं०- पम्हगंधा मियगंधा अममा तेयतली सहा सणिंचारिश सेवं भंते! सेवं भंते! ॥ २४७॥श०६ ३० ७॥ कइणं भते! पुढवीओ पं०?, गोयमा! अव पुढवीओ पं० २०-रयणप्यभा जाव इसीप्पभारा, अस्थि णं भंते! इभीसे रयणसभा पुढवीए अहे गेहाति वा गेहावणाति वा?, गोयमा! णो तिणटे समटे, अस्थि णं भंते! इभीसे रयणप्यभाए अहे गामाति वा जाव ॥ ॥ श्रीभगवनी सूत्रं ॥ ५. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021005
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 01 Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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