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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दुविहा दव्वा पं०त०- परिणता चेव अपरिणता चेव १६, दुविहा पुढवीकाइया पं० तं० - गतिसमावन्नगा चेव अगइसमावन्नगा चेव १७, एवं जाव वणस्सइकाइया २१, दुविहा दव्वा पं० तं०- गतिसमावन्नगा चेव अगतिसमावन्नगा चेव २२, दुविहा पुढवीकाइया पं०त०अणंतरोगाढा चेव परंपरोगाढा चेव २३, जाव दव्वा० २८ । ७३ । दुविहे काले पं०त०-ओसम्पिणीकाले चेव उस्सप्पिणीकाले चेव, दविहे आगासे पं०त०- लोगागासे चेव अलोगागासे चेव । ७४ । णेरइयाणं दो सरीरगा पं०तं०-अब्यंतरगे चेव बाहिरगे चेव, अमनमा कम्मर वाहिरए वेडव्विए, एवं देवाणं भाणियव्वं, पुढवीकाइयाणं दो सरीरगा पं०तं०-अब्भंतरगे चेव बाहिरगे चेव, | अब्यंतरगे कम्मए बाहिरगे ओगलियगे, जाव वणस्सइकाइयाणं, बेइंदियाणं दो सरीरा पं०त०-अब्यंतरए चेव बाहिरए चेव, अब्भंतर गे कम्मए अदिठ मंससोणितबद्धे वाहिरए ओरालिए, जाव चउरिदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो सरीरगा पं० तं०-अब्यंतर गे चेव बाहिरगे चेव, अब्भंतरगे कम्मए अट्ठिमंससोणियण्हारु छिरावद्धे बाहिरए ओरालिए, मणुस्साणवि एवं चेव । विग्गहगइसमावन्नगाणं नरड्याणं दो सरीरगा पं०तं०- तेयए चेव कम्मए चेव, निरन्तरं जाव वेमाणियाणं, नेरइयाणं दोहिं ठाणेहिं सरीरुम्पत्ती सिया, तं०रागेण चेव दोसेण चेव, जाव वेमाणियाणं, नेरइयाणं दुट्ठाणनिव्वतिए सरीरंगे पं०तं० रागनिव्वत्तिए चेव दोसनिव्वत्तिए चेव, जाव वैमाणियाणं, दो काया पं० तं०-तसकाए चेव थावरकाए चेव, तसकाए दुविहे पं० नं० - भवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव, एवं थावरकाए5वि । ७५ । दो दिसाओ अभिगिज्झ कष्पति णिग्गंथाणं वा णिग्गंथीण वा पव्वावित्तए पाईणं चेव उदीणं चेव, एवं ।। શ્રીસ્થાનક મૃત્ર ॥ ११ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal
SR No.021003
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages221
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size14 MB
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