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आलीणगुत्तो परिव्वए पुरिसा! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि? ११८ जंजाणिज्जा उच्चालइयं तंजाणिज्जादूरालइयं|| जंजाणिज्जा दूरालइयं तंजाणिज्जा उच्चालइयं, पुरिसा अत्ताणमेवं अभिणिगिज्झएवंदुक्खा पमुच्चसि पुरिसा सच्चमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स आणाए से उवहिए मेहावी मारं तरइ, सहिओ धम्ममायाय सेयं समणुप्रस्सइ ११९।दुहओ जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जंसि एगे पमायति । १२०१ सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो झंझाए, पासिमं दविए लोकालोकपवंचाओ मुच्चइत्तिबेमि ॥१२१ ॥अ० ३ ३०३ ॥
- सेवंता कोहं च माणंच मायं च लोभं च, एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियं तकरस्स आयाणं सगडब्धि।१२२।। जे एगंजाणइ से सव्वं जाणइ जे सव्वं जाणइ से एगं जाणए १२३। सवओ पमत्तस्स भयं, सवओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं, जे एग नामे से बहुं नामे जे बहं नामे से एगं नामे, दुक्खं लोगस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जति धी (प्र० वी ) रा महाजामं, परेण पर जंति, नावखंति जीवियं । १२४ । एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढोवि सड्ढी आणाए, मेहावी लोगं च आणाए अभिसमिच्चा अकुओभयं, अस्थि सत्थं परेण परं, नथ् िअसत्थं परेण परं १२५ोजे कोहदंसी से माणदंसीजे माणदंसी से मायादंसी जे मायादंसी/ से लोभदंसी जे लोभदंसी से पिजदंसी जे पिज्जदंसी से दोसदंसी जे दोसदंसी से मोहदंसी जे मोहदंसी से गब्भदंसी जे गब्भदंसी से जम्मदंसी जे जम्मदंसी से मारंदसी जे भारदंसी से नरयदंसी जे नरयदंसी से तिरियदंसी जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी से मेहावी | श्रीआचाराङ्ग सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
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