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८६८
अनुयोगद्वार
वर्णयामि एकैकं पदं प्रज्ञापयामीत्यर्थः । व्याख्यानमकार मेवाह - 'संहिया य पयं चेव' इत्यादि । तत्र संहिता अस्खलित पदोच्चारणम्, यथा- 'करेमि भंते! सामाइयं' इत्यादि || १ || पदं - सुप्तिङन्तरूपम्, यथा- 'करेमि ' इत्येकं पदम्, 'भंते' इति द्वितीय पदम्, 'सामाइयं' इति तृतीयं पदम् ||२|| पदार्थ = 'करेमि' इत्यभ्युपगमः, 'भंते' इति गुमन्त्रणम्, 'सामाइयं' इति समस्य आयः रत्नत्रयलाभः ||३|| पदविग्रहः = प्रकृतिप्रत्ययविभागरूपो विस्तारः, यथा समस्य आय:- समायः स एव सामायिकमिति ||४|| चालना = मूत्रस्य अर्थस्य वाऽनुपपत्त्युद्भावनम् ||५|| प्रसिद्धि : = द्वारा अनधिगत अधिकारों का उन्हें अधिगम हो, इस निमित्त पद से पद का वर्णन करता हूँ । अर्थात्-एक-एक पद की प्रज्ञापना करता हूँ। (संहिया य पयं चेत्र पघत्थे। पयविग्गहो । चालणा य पसिद्वीप, छव्विहं विद्धि लक्खणं) अस्खलितरूप से पद का उच्चारण करना इसका नाम संहिता है । जैसे- 'करेमि भंते सामाइये' इत्यादि । सुबन्त और तिगन्त प्रतिपादिक शब्द की पद संज्ञा होती है। जैसे 'करेमि ' यह प्रथम तिङ्गलपद है, 'भंते' यह द्वितीय सुबन्त पद है । 'सामाइयं' यह तीसरा पद है । पद के अर्थ का नाम पदार्थ है- 'जैसे करेभि' करता हूं का अर्थ सामायिक करने का अभ्युपगम होता है । 'भंते' यह गुरुजनों के लिये आमंत्रण है । तथा-समरूप रत्नत्रय का आय-लाभ - यह सामायिक पद का अर्थ हैं। प्रकृति प्रत्यय का विभागरूप जो विस्तार है-वह पदविग्रह है । 'जैसे समस्य आयः समायः समाय एव सामायिकम् ' सूत्र की अथवा अर्थ की अनुपपत्ति का उद्भावन करना इसका नाम स्वामि) मेथी ते मुनिओ वडे अनधिगत व्यर्थाधिकारी तेभने अधिगम होय,
આ નિમિત્તપદથી વર્ણન કરું છું, એટલે કે એક એક પન્નુની પ્રજ્ઞાપના કરું छु. ( संहिया य पयं वेत्र पयत्यो पयविग्गगहो । चालणा य पसिद्धीय छव्विहं विद्धि लक्खणं) मस्यसित ३पथी पहनु उभ्यारण १२ ते सहिता छे. प्रेम 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि सुत भने तिङ्गन्त प्रतिपादित शब्दनी यह संज्ञा थाय छे. प्रेम 'करेमि' आ यह तिङगन्त यह छे. 'भंते' मा द्वितीय सुत यह छे. 'सामाइयं' था तृतीय यह छे, पहना अर्थनुं नाम पहार्थ छे. प्रेम 'करेमिनो अर्थ' सामायिक श्वानो सभ्युगम होय छे. 'भंते' मा ગુરુજીના માટે આમંત્રણ છે. તથા સમરૂપ રત્નત્રયના આય-લાભ-આ સામાયિક પદના અથ છે. પ્રકૃતિ પ્રત્યયના વિભાગ રૂપ જે વિસ્તાર છે, તે यहविग्रह छे. प्रेम ' समस्य आयः समायः समायः एव सामायिकम्' सूत्रनी અથવા અંની અનુપપત્તિનું ઉર્દૂભાવન કરવું તે ચાલના છે. સૂત્ર અને તેના
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