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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगधन्द्रिका टीका सूत्र २४९ सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगमनिरूपणम् ८६५ छाया-- अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् । ___अस्तोभमनवधं च सूत्रं सर्वज्ञभाषितम् ॥इति॥ एषां षड्गुणानां पूर्वोक्तेष्वेवान्तर्भावो भवति । एषामपि व्याख्या उत्तराध्ययनसूत्रे तत्रैवावलोकनीयेति । एवं सूत्रानुगमे समस्तदोषवर्जिले सूत्रे समुच्चारिते सति ततस्तत्र पत्रे ज्ञास्यते स्वसमयपद स्वसिद्धान्तसम्मतजीवाद्यर्थपतिपादक पद वा, परसमयपदंपरसिद्धान्तसम्मतमधानेश्वरादिप्रतिपादकं पदं वा ज्ञास्यते । अनयोः-स्वसमयपरसमयपदयोमध्ये यत्परसमयप्रतिपादकं पदं तत्माणिनां कुवा. प्रकार से हैं-(१) अल्पाक्षर (२) असंदिग्ध (३) सारवत् (४) विश्वतोमुख, (५) अस्तोम (३) अनवद्य । इन ६ गुणों का अन्तर्भाव पूर्वोक्त गुणों में ही हो जाता है। इसकी व्याख्या उत्तराध्ययन सूत्र में वहीं पर देखनी चाहिये। (तो तत्थ) सूत्रानुगम में इस प्रकार से समस्त दोषवर्जित सूत्र समुच्चारित होने पर (जिहिति) उस सूत्र में यह बात मालूम देगी कि (ससमयपयं वा परसमयपयं वो बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा णो सामाइयपयं वा) यह स्वसमयपद है, यह परसमय पद है, यह बन्ध पद है, यह मोक्षपद है, यह सामायिक पद है अथवा नो सामायिक पद है। स्वसिद्धान्त सम्मत जीवादिक पदार्थों का प्रतिपादक णो पद है, वह स्वसमय पद है। परसिद्धान्त सम्मत प्रधान-प्रकृति - ईश्वर आदि का प्रतिपादन करनेवाला जो पद है, वह परसमय पद है। इन स्वसमय और परसमय पद के बीच में जो परसमयप्रतिपादक पद है, वह प्राणियों में कुवा. मा प्रभार छे. (१) महाक्ष२, (२) असहिग्य, (3) सा२१त् (४) विश्वभुम, (५) सरल, (६) मनवय. ६ गुणाना अन्तर्भाव पूति गुमा જ થઈ જાય છે. એમની વ્યાખ્યા ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રમાં આપવામાં આવી છે तो ते त्यांथी ए वी न . (तओ तत्थ) सूत्रानुगममा मा प्रमाणे समस्त दोष रित सूत्र सभुश्यरित पाथी (गज्जिहिति) [ सूत्रथी मा पातारी (ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयायं वा णोसामाइयपय वा) मा २१समय ५४ छ, । પરસમય પદ છે, આ બવ પદ છે, આ મેક્ષ પદ છે, આ સામાયિક પદ છે અથવા આ નોસામાયિક પદ છે. સ્વસિદ્ધાન્ત સમ્મત જીવાદિક પદાર્થોનું પ્રતિપાદક જે પદ છે, તે સ્વસમય પદ છે. પરસિદ્ધાન્તસમ્મત પ્રધાનપ્રકૃતિ-ઈશ્વર વગેરેનું પ્રતિપાદક જે પદ છે, તે પરસમયપદ છે. આ સ્વસમય અને પરસમય પદની વચ્ચે જે પરસમય પ્રતિપાદક अ० १०९ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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